________________ प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य भाजन वस्त्राणि प्रतिलेखयति, प्रतिलेख्य भाजनवस्त्राणि प्रमार्जयति प्रमाद्य भाजनान्युद्गृह्णाति; उद्गृह्य येनैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तेनैवोपागच्छति, उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्कृत्य एवमवादीत्—“इच्छामि खलु भदन्त! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः षष्ठक्षपणपारणके वाणिज्यग्रामनगरे उच्च-नीच-मध्यमानि कुलानि गृह समुदानस्य भिक्षाचर्यायै अटितुम् / " “यथासुखं देवानुप्रिय! मा प्रतिबन्धं कुरु।" शब्दार्थ तए णं तदनन्तर, से भगवं गोयमे भगवान गौतम ने, छट्ठक्खमणपारणगंसिषष्ठक्षपणा के. अर्थात् बेला उपवास के पारणे के दिन, पढमाए पोरिसीए प्रथम पौरुषी में, सज्झायं करेइ स्वाध्याय किया, बिइयाए पोरिसीए दूसरी पौरूषी में, झाणं झियाइ–ध्यान किया, तइयाए पोरिसीए तीसरी पौरुषी मे, अतुरियं शीघ्रता-रहित, अचवलं चपलता रहित, असंभंतेअसम्भ्रान्त होकर, मुहपत्तिं पडिलेहेइ–मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की, पडिलेहित्ता प्रतिलेखना करके, भायण वत्थाइं—पात्र और वस्त्रों की, पडिलेहेइ प्रतिलेखना की, पडिलेहित्ता–प्रतिलेखना करके, भायण वत्थाइं—पात्र और वस्त्रों का, पमज्जइ प्रमार्जन किया, पमज्जित्ता प्रमार्जन करके, भायणाइं—पात्रों को, उग्ग्गाहेइ—उठाया, उग्गाहित्ता—उठाकर, जेणेव समणे भगवं महावीरे—जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, तेणेव वहां, उवाग्गच्छइ आए, उवागच्छित्ता आकर, समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान महावीर को, वंदइ नमसइ-वन्दना नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता वन्दना नमस्कार करके, एवं वयासी इस प्रकार कहा, भंते भगवन्! तुब्मेहिं—आपकी, अब्भणुण्णाए—अनुमति प्राप्त होने पर, छट्ठक्खमणपारणगंसि—बेला पारणा के लिए, वाणियग्गामे नयरे—वाणिज्यग्राम नगर मे, उच्चनीयमज्झिमाई कुलाइं—उच्च-नीच और मध्यम कुलों की, घरसमुदाणस्स—गृहसमुदानी-सामूहिक घरों से, . भिक्खायरियाए भिक्षाचर्या के लिए, अडित्तए पर्यटन करना, इच्छामि णं चाहता हूं, भगवान ने उत्तर दिया, देवाणुप्पिया हे देवानुप्रिय! अहासुहं—जैसे तुम को सुख हो, मा पडिबंधं करेह बिलम्ब न करो। - भावार्थ तदनन्तर भगवान गौतम ने छट्टखमण बेला पारणे के दिन पहली पौरुषी में स्वाध्याय किया, दूसरी पौरुषी में ध्यान किया, तीसरी पौरुषी में बिना शीघ्रता के, चपलता एवं उद्वेग के बिना शान्त चित्त से मुख वस्त्रिका एवं पात्रों व वस्त्रों की प्रतिलेखना की और परिमार्जन किया। तत्पश्चात् जहां श्रमण भगवान महावीर थे वहां पहुंचे, उन्हें वन्दना नमस्कार किया और पूछा, भगवन् ! आपकी अनुमति प्राप्त होने पर मैं बेला पारणे के लिए वाणिज्य ग्राम में उच्च, मध्यम तथा अधम सभी कुलों में समुदानीकी भिक्षाचर्या करना चाहता हूं। हे देवानुप्रिय! जैसे तुम्हें सुख हो, विलम्ब मत करो, भगवान ने उत्तर दिया। टीका प्रस्तुत सूत्र में पारणे के दिन का वर्णन किया गया है। गौतम स्वामी ने पहले प्रहर में श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 176 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन