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________________ शब्दार्थ तेणं कालेणं उस काल चौथे आरक में, तेणं समएणं—उसी समय में जब वाणिज्य ग्राम में आनन्द की अवधिज्ञान उत्पन्न हो चुका था, समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान महावीर, समोसरिए—पधारे, परिसा निग्गया—परिषद् धर्म श्रवणार्थ गई, जाव—यावत्, पडिगया—और लौट गई। भावार्थ—उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम धर्म जागृति करते हुए वाणिज्य ग्राम के बाहर दुतिपलाश चैत्य में पधारे। नगर की परिषद् धर्म श्रवण करने के लिए गई और धर्म उपदेश सुनकर वापिस लौट आई। __टीका प्रस्तुत सूत्र में वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर दुतिपलाश चैत्य में श्रमण भगवान महावीर के पुनरागमन का निर्देश किया गया है। लोगों का धर्म श्रवण के लिए आने और वापिस लौटने का भी संकेत है। इन सबका विस्तृत वर्णन पहले आ चुका है। - गौतम स्वामी का वर्णन मूलम् तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अन्तेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयम गोत्तेणं सत्तुस्सेहे, समचउरंससंठाण संठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे, कणगपुलगनिघसपम्हगोरे उग्गतवे, दित्ततवे, तत्ततवे, घोरतवे, महातवे, उराले, घोरगुणे घोरतवस्सी, घोरबंभचेरवासी, उच्छूढसरीरे, संखित्तविउलतेउलेस्से, छठें-छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ // 76 // छाया तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूतिर्नाम अनगारो गौतम-गोत्रः खलु सप्तोत्सेधः, समचतुरस्र संस्थान संस्थितः, वज्रर्षभनाराचसंहननः, कनकपुलकनिकषपद्मगौरः, उग्रतपाः, दीप्ततपाः, तप्ततपाः, घोरतपाः, महातपाः, उदारः, घोरगुणः, घोरतपस्वी, घोरब्रह्मचर्यवासी, उत्सृष्टशरीरः, संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्यः, षष्ठषष्ठेन अनिक्षिप्तेन तपः कर्मणा, संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति / शब्दार्थ तेणं कालेणं-उस काल, तेणं समएणं—उस समय, समणस्स भगवओ महावीरस्सश्रमण भगवान महावीर के, जेठे अन्तेवासी—प्रधान शिष्य, इंदभूई नामं अणगारे—इन्द्रभूति नामक अनगार, गोयमगोत्तेणं गौतम गोत्रीय, सत्तुस्सेहे सात हाथ ऊँचे शरीर वाले, समचउरंससंठाणसंठिए समचतुरस्र संस्थान वाले, वज्जरिसहनारायसंघयणे वज्रर्षभनाराचसंहनन वाले, कणगपुलगनिघसपम्हगोरे निकष कसौटी पर घिसे हुए सोने की रेखा और पद्म के समान गौरवर्ण वाले, उग्गतवे—उग्र तपस्वी, दित्ततवेदीप्त तपस्वी, तत्ततवे तप से तपे हुए, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 173 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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