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________________ क्षुरमुण्डो लोचेन वा रजोहरणमवग्रहं च गृहीत्वा | श्रमणभूतो विहरति धर्मं कायेन स्पृशन् // एवत्सुकृष्टेनैकादश मासान् यावद् विहरति / एकाहादेः परतः एवं सर्वत्र प्रायेण // उपरोक्त पाठ में प्रतिमाओं के पालन के लिए तीन पद दिए हैं— 'अहासुत्तं' अहाकप्पं तथा 'अहामग्गं'। 'अहासुत्तं' का अर्थ है शास्त्र में उनका जैसा प्रतिपादन किया गया है तदनुसार / 'अहाकपं' का अर्थ है कल्प अर्थात् श्रावक की मर्यादा के अनुसार / 'अहामग्गं' का अर्थ है मार्ग अर्थात् क्षायोपशमिक स्थिति के अनुसार। ग्यारह प्रतिमाओं में श्रावक धर्म का प्रारम्भ से लेकर उच्चतम रूप मिलता है। इनका प्रारम्भ सम्यक् दर्शन से होता है और अन्त ग्यारहवीं श्रमणभूत प्रतिमा के साथ / तत्पश्चात् मुनिव्रत है। श्रावक की मर्यादा यहीं समाप्त हो जाती है। 'आनन्द श्रमणोपासक ने उपरोक्त ग्यारह प्रतिमाओं का विधिविधान के अनुसार शास्त्रोक्त रीति से भली प्रकार आराधन किया। * आनन्द का तपश्चरण और शरीर शोषण- मूलम्-तए णं से आणंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवो-कम्मेणं सुक्के जाव किसे धमणिसंतए जाए // 72 // ___छाया-ततः खलु स आनन्दः श्रमणोपासकोऽनेनैतद्रूपेणोदारेण विपुलेन प्रत्यनेन प्रगृहीतेन तपः कर्मणा शुष्को यावत्कृशो धमनिसंततो जातः। - शब्दार्थ तए णं तत्पश्चात्, स—वह, - आणंदे समणोवासए—आनन्द श्रमणोपासक, इमेणं—इस, एयारूवेणं-एतत्स्वरूप, उरालेणं-उदार, विउलेणं विपुल, पग्गहिएणं स्वीकृत पयत्तेणं—प्रयत्न तथा, तवोकम्मेणं तपःकर्म से, सुक्के—शुष्क, जाव—यावत्, किसे—कृश, धमणिसंतए—उभरी हुई नाडियों से व्याप्त सा, जाए—हो गया। भावार्थ इस प्रकार के कष्टकर एवं विपुल श्रम तथा तप के ग्रहण करने के कारण आनन्द का शरीर सूख गया, उसकी नसें दिखाई देने लगीं। आनन्द द्वारा मरणांतिक संल्लेखना का निश्चय.., मूलम् तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्ता० जाव ऊपर ग्यारह प्रतिमाओं का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। विशेष ज्ञान के लिए मेरे द्वारा विरचित दशाश्रुतस्कन्ध की "गणपतिगुणप्रकाशिका" नामक भाषा टीका में छठी दशा का अनुशीलन करना चाहिए व्याख्याकार / | . श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 167 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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