________________ की गई हो। सांसारिक कार्यों के विषय में कोई बात पूछने पर इतना ही उत्तर देता है कि 'मैं इसे जानता हूँ या नहीं जानता।' इसके अतिरिक्त प्रवृत्ति विषयक कोई आज्ञा, आदेश या परामर्श नहीं देता। सिर को उस्तरे से मुँडाता है। कोई कोई शिखा रखता है। इसकी कालमर्यादा कम से कम एक, दो या तीन दिन उत्कृष्ट दस मास है। उद्दिट्टकडं भत्तंपि वज्जए किमुय सेसमारम्भं / सो होइ उ खुरमुण्डो, सिहलिं वा धारए कोइ || दव्वं पुट्ठो जाणं जाणे इइ वयइ नो य नो वेति / पुव्वोदिय गुणजुत्तो दस मासा कालमाणेणं // उद्दिष्टकृतं भक्तमपि वर्जयति किमुत शेषमारम्भम् | स भवति तु क्षुरमुण्डः शिखां वा धारयति कोऽपि || ... द्रव्यं पृष्टो जानन् जानामीति नो वा नैवेति / पूर्वोदित गुणयुक्तो दश मासान् कालमानेन // (11) श्रमणभूत प्रतिमा-ग्यारहवीं पडिमाधारी सर्वधर्म विषयक रुचि रखता है। उपरोक्त सभी नियमों का पालन करता है। सिर के बालों को उस्तरे (क्षुर) से मुण्डवा देता है, शक्ति होने पर लुञ्चन कर सकता है। साधु जैसा वेष धारण करता है। साधु के योग्य भण्डोपकरण आदि उपधि धारण कर श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिपादित धर्म का निरतिचार पालन करता हुआ विचरे / ग्यारहवीं पडिमाधारी की सारी क्रियाएँ साधु के समान होती हैं अतः प्रत्येक क्रिया में यंतनापूर्वक प्रवृत्ति करे। साधु के समान ही गोचरी से जीवन निर्वाह करे किन्तु इतना विशेष है कि उस उपासक का अपने सम्बन्धियों से सर्वथा राग नहीं छूटता है, इसलिए वह उन्हीं के घरों में गोचरी लेने जाता है। इस प्रतिमा का कालमान जघन्य एक.दो. तीन दिन है. उत्कष्ट 11, मास है। अर्थात यदि ग्यारह महीने से पहले ही प्रतिमाधारी श्रावक की मृत्यु हो जाए या दीक्षित हो जाए तो जघन्य या मध्यम काल ही उसकी अवधि है। यदि दोनों में से कुछ भी न हो तो उपरोक्त सब नियमों के साथ ग्यारह महीने तक इस पडिमा का पालन किया जाता है। सब पडिमाओं का समय मिलाकर साढ़े पाँच वर्ष होता है। खुरमुण्डो लोएण व रयहरणं ओग्गहं च घेत्तूणं / समणब्भूओ विहरइ धमं काएण फासेन्तो // एवं उक्कोसेणं एक्कारसमास जाव विहरेइ / एक्काहाइपरेणं एवं सव्वत्थ पाएणं // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 166 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन