________________ दो या तीन दिन है और उत्कृष्ट छः मास है। यावज्जीवन भी ब्रह्मचर्य को धारण कर सकता है। ___ (7) सचित्ताहारवर्जन प्रतिमा सातवीं पडिमा में सर्वधर्म विषयक रूचि होती है। इसमें उपरोक्त सब नियमों का पालन किया जाता है। इस पडिमा का धारक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है और सचित्त आहार का सर्वथा त्याग कर देता है, किन्तु आरम्भ का त्याग नहीं करता। इसकी उत्कृष्ट काल मर्यादा सात मास है। दिगंबर परम्परा में सातवीं ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। सच्चित्तं आहारं वज्जइ असणाइयं निरवसेसं / सेसवय समाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुव्वं // सचित्तमाहारं वर्जयति अशनादिकं निरवशेषम् / शेषपदसमायुक्तो यावन्मासान् सप्त विधि पूर्वम् || (8) स्वयं आरम्भवर्जन प्रतिमा—इस प्रतिमा का धारक' उपरोक्त सभी नियमों का पालन करता है। सचित्त आहार का त्याग करता है। स्वयं किसी प्रकार का आरम्भ अथवा हिंसा नहीं करता। इसमें आजीविका अथवा निर्वाह के लिए दूसरे से कराने का त्याग नहीं होता। काल मर्यादा कम से कम एक दिन, दो दिन या तीन दिन और उत्कृष्ट 8 मास है। वज्जइ सयमारम्भं सावज्ज कारवेइ पेसेहिं / वित्तिनिमित्तं पुव्वय गुणजुत्तो अट्ठ जा मासा || वर्जयति स्वयमारम्भं सावधं कारयति प्रेष्यैः / वृत्तिनिमित्तं पूर्वगुणयुक्तोऽष्ट यावन्मासान् // (6) भृतकप्रेष्यारम्भवर्जनप्रतिमा-नवमी पडिमा को धारण करने वाला उपासक उपरोक्त सब नियमों का यथावत् पालन करता है। आरम्भ का भी परित्याग कर देता है किन्तु उद्दिष्ट भक्त का परित्याग नहीं करता अर्थात् जो भोजन उसके निमित्त बनाया गया है वह उसे ग्रहण कर लेता है। वह स्वयं आरम्भ नहीं करता, न दूसरों से कराता है किन्तु अनुमति देने का उसका त्याग नहीं होता। इस प्रतिमा का कालमान कम से कम एक, दो या तीन दिन है और अधिक से अधिक 6 मास है। पेसेहिं आरम्भं सावज्ज कारवेइ नो गुरुयं / पुव्वोइयगुणजुत्तो नव मासा जाव विहिणा उ || प्रेष्यैराम्भं सावधं कारयति नो गुरुकम् / . पूर्वोदित गुणयुक्तो नव मासान् यावद्विधिनैव // (10) उद्दिष्टभक्तवर्जन प्रतिमा—इस प्रतिमा में उपासक अपने निमित्त से बने हुए भोजन का भी परित्याग कर देता है अर्थात् ऐसी कोई वस्तु स्वीकार नहीं करता जो उसके लिए बनाई या तैयार | श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 165 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन