________________ . वरदंसणवयजुत्तो सामाइयं कुणइ जो उ तिसञ्झासु | उक्कोसेण तिमासं एसा सामाइयप्पडिमा // वरदर्शनव्रत युक्तः सामायिकं करोति यस्तु त्रिसंध्यासु / उत्कृष्टेन त्रीन् मासान् एषा सामायिक प्रतिमा || (4) पौषध प्रतिमा पूर्वोक्त तीन प्रतिमाओं के साथ जो व्यक्ति अष्टमी, चतुर्दशी आदि पर्व तिथियों पर प्रतिपूर्ण पौषधव्रत की पूर्णतया आराधना करता है, यह पौषध प्रतिमा है। इस पडिमा की अवधि चार मास की होती है। पुव्बोदियपडिमा जुओ पालइ जो पोसहं तु सम्पुण्णं | अट्ठमि चउद्दसाइसु चउरो मासे चउत्थी सा || पूर्वोदित प्रतिमायुतः पालयति यः पौषधं तु संपूर्णम् / अष्टमी चतुर्दश्यादिषु चतुरो मासान् चतुर्युषा || (5) कायोत्सर्ग प्रतिमा कायोत्सर्ग का अर्थ है शरीर का त्याग अर्थात् कुछ समय के लिए शरीर-वस्त्र आदि का ध्यान छोड़कर मन को आत्मचिन्तन में लगाना, इस प्रकार रात भर ध्यान का अनुष्ठान करना कायोत्सर्ग प्रतिमा है। इसकी अवधि पाँच मास है। दिगम्बर परम्परा में इसके स्थान पर सचित्त त्याग प्रतिमा है। सम्ममणुव्वयगुणवयसिक्खावयवं थिरो य नाणी य / अट्ठमिचउद्दसीसुं पडिमं ठाएगराइयं // असिणाण वियडभोई मउलिकडो दिवसबम्भयारी य / राइं परिमाणकडो पडिमावज्जेसु दियहेसु // झायइ पडिमाए ठिओ, तिलोयपुज्जे जिणे जियकसाए | नियदोस पच्चणीयं अण्णं वा पञ्च जा मासा || सम्यक्त्वाणुव्रतगुणव्रतशिक्षाव्रतवान् स्थिरश्च ज्ञानी च / अष्टमी चतुर्दश्योः प्रतिमां तिष्ठत्येकरात्रिकीम् // अस्नानो दिवसभोजी मुत्कलकच्छो दिवस ब्रह्मचारी च / रात्रौ कृतपरिमाणः प्रतिमा वर्जेषु दिवसेषु // ध्यायति प्रतिमया स्थितः त्रैलोक्यपूज्यान् जिनान् जितकषायान् | निजदोषप्रत्यनीकमन्यद्वा पञ्च यावन्मासाम् // श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 163 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन त्रा