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________________ भावार्थ तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अन्य जनपदों में विहार कर गए और वहाँ धर्मोपदेश देते हुए विचरने लगे। मूलम् तए णं से आणंदे समणोवासए जाए अभिगय-जीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ // 64 // छाया ततः खलु स आनन्दः श्रमणोपासको जातोऽभिगतजीवाजीवो यावत् प्रतिलाभयन् विहरति। शब्दार्थ तए णं—इसके अनन्तर, से—वह, आणंदे—आनन्द, अभिगय-जीवाजीवे—जीव और अजीव आदि तत्त्वों को जानने वाला, समणोवासए श्रमणोपासक, जाए—हो गया, जाव यावत्, पडिलाभेमाणे साधु-साध्वियों को प्रासुक आहारादि का दान करते हुए, विहरइ–जीवन व्यतीत करने लगा। भावार्थ इसके पश्चात् आनन्द जीव-अजीव आदि नौ तत्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक बन गया और साधु-साध्वियों को प्रासुक आहार देते हुए धर्ममय जीवन व्यतीत करने लगा। मूलम् तए णं सा सिवनन्दा भारिया समणोवासिया जाया जाव पडिलाभेमाणी विहइइ // 65 // छाया ततः खलु सा शिवानन्दा भार्या श्रमणोपासिका जाता, यावत् प्रतिलाभयन्ती विहरति / शब्दार्थ तएणं इसके अनन्तर, सा—वह, सिवनन्दा भारिया शिवानन्दा भार्या भी, समणोवासिया जाया श्रमणोपासिका हो गई, जाव—यावत्, पडिलाभेमाणी–साधु-साध्वियों की आहारादि द्वारा सेवा करती हुई, विहरइ जीवन व्यतीत करने लगी। भावार्थ तदनन्तर शिवानन्दा भार्या भी श्रमणोपासिका बन गई और साधु-साध्वियों को शुद्ध, अन्न, जल, वस्त्र, पात्र, कम्बल बहराती हुई विचरने लगी। आनन्द द्वारा घर से अलग रहकर धर्माराधन का संकल्प और ज्येष्ठ पुत्र को गृह भार सौंपना मूलम् तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सीलव्वयगुण-वेरमणपच्चक्खाण- पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वइक्कंताई / पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्त-काल-समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था—“एवं खलु अहं वाणियग्गामे नयरे बहूणं राई-सर जाव सयस्सवि य णं श्री उपासक दशांग सू त्रम् / 154 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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