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________________ भावार्थ हे भगवन् ! इस प्रकार का सम्बोधन करते हुए गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना नमस्कार किया और पूछा हे भगवन् ! क्या आनन्द श्रमणोपासक देवानुप्रिय के पास मुण्डित एवं प्रव्रजित होने में समर्थ है ? भगवान् ने उत्तर दिया हे गौतम ! यह संभव नहीं है। अपितु आनन्द श्रमणोपासक अनेक वर्षों तक श्रावक धर्म का पालन करेगा और अन्त में सौधर्म देवलोक के अरुणाभ विमान में उत्पन्न होगा। वहाँ बहुत से देवताओं की चार पल्योपम आयु है, आनन्द की आयु भी चार पल्योपम होगी। टीका प्रस्तुत सूत्र में गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से आनन्द के भविष्य के विषय में पूछा है। पहला प्रश्न उसके वर्तमान जीवन से सम्बन्ध रखता है, उसमें पूछा गया है—क्या आनन्द श्रावक मुनिव्रत धारण करेगा ? भगवान ने उत्तर दिया-नहीं ऐसा नहीं होगा। साथ ही भगवान ने बताया कि वह सौधर्म देवलोक के अरुणाभ नामक विमान में देवरूप में उत्पन्न होगा और वहाँ उसकी चार पल्योपम आयु होगी। जैन धर्म के अनुसार देवों के चार निकाय (समूह) हैं— (1) भवनपति—भूमि के अन्दर रहने वाले देव / (2) वाणव्यन्तर - भूमि पर रहने वाले देवता को वाणव्यन्तर कहते हैं। (3) ज्योतिषि सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र तथा तारालोक में रहने वाले देवता ज्योतिषि कहलाते हैं। (4) वैमानिक ऊर्ध्व लोक में रहने वाले देव—इनके 26 भेद हैं। प्रथम देवलोक का नाम सौधर्म है जहाँ 32 लाख विमानों का अधिपति शक्रेन्द्र है। देवलोकों का विस्तृत वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के द्वितीय पद, भगवती सूत्र तथा देवेन्द्रस्तव आदि से जानना चाहिए। पल्योपम काल के परिमाण विशेष का नाम है, एक योजन लम्बे, एक योजन चौड़े और एक योजन गहरे गोलाकार कूप की उपमा से जो काल गिना जाए उसे पल्योपम कहते हैं। अनुयोग द्वार सूत्र में इसका विस्तृत वर्णन है। इसके लिए टिप्पणी देखिए। भगवान महावीर का प्रस्थानमूलम् तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जाव विहइइ // 63 // छाया–ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरोऽन्यदा कदापि बहिर्यावद् विहरति / शब्दार्थ तएणं इसके अनन्तर, समणे भगवं महावीरे श्रमण भगवान् महावीर, अन्नया कयाइ–अन्यदा कदाचित, बहिया–अन्यत्र विहार कर गए, जाव—यावत् धर्मोपदेश करते हुए, विहरइ–विचरने लगे। श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 153 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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