SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छाया–ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरः शिवानन्दायै तस्यां च महत्यां यावद् धर्म कथयति। शब्दार्थ तएणं इसके अनन्तर, समणे भगवं महावीरे-श्रमण भगवान महावीर ने, सिवानंदाए शिवानंदा को और, तीसे य महइ—उस महती परिषद् में उपस्थित अन्य जनता को भी, धम्मं धर्म, कहेइ—प्रवचन सुनाया। भावार्थ तदनन्तर भगवान महावीर ने शिवानंदा और उस विशाल सभा को धर्मोपदेश दिया। __टीका—जब शिवानन्दा भार्या और महती परिषद् श्री भगवान के समीप उपस्थित हुई तब भगवान ने संवेगनी, निर्वेदनी, आक्षेपणी और विक्षेपणी इन चारों धर्म कथाओं का सविस्तार वर्णन किया। शिवानन्दा की प्रतिक्रियामूलम् तएणं सा सिवनंदा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठ जाव गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जिता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया // 61 // ___छाया ततः खलु. सा शिवानन्दा श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्मं श्रुत्वा निशम्य हृष्टा यावद् गृहस्थधर्मं प्रतिपद्यते, प्रतिपद्य तदेव धार्मिक यानप्रवरमारोहति, आरुह्य यस्या एव दिशः प्रादुर्भूता तामेव दिशं प्रतिगता। शब्दार्थ तएणं इसके अनन्तर, सा सिवनन्दा—वह शिवानन्दा, समणस्स भगवओ महावीरस्स–श्रमण भगवान महावीर के, अंतिए—पास में, धम्मं धर्म को, सोच्चा–सुनकर, निसम्म हृदय में धारण करके, हट्ठ–प्रसन्न हुई, जाव–और यावत् उसने, गिहिधमं—गृहस्थ धर्म को, पडिवज्जइ स्वीकार किया, पडिवज्जित्ता स्वीकार करके, तमेव धम्मियं जाणप्पवरं—उसी धार्मिक-धर्म कार्यों के लिए निश्चित रथ पर, दुरुहइ–सवार हुई, दुरुहित्ता–सवार होकर, जामेव दिसं पाउब्भूया जिस दिशा से आई थी, तामेव दिसं—उसी ओर, पडिगया—लौट गई। . भावार्थ-शिवानन्दा श्रमण भगवान महावीर के पास धर्म श्रवण कर एवं उसे हृदयंगम करके अतीव प्रसन्न हुई। उसने भी यथाविधि गृहस्थधर्म ग्रहण किया और उसी धर्म कार्यों के लिए निश्चित रथ पर सवार होकर जिस ओर से आई थी उसी ओर लौट गई। - टीका शिवानन्दा भार्या ने श्री भगवान के मुख से धर्मकथा श्रवण की, तत्पश्चात् उसने गृहस्थ धर्म के द्वादश व्रत ग्रहण किए। फिर वह जिस प्रकार आई थी उसी प्रकार धार्मिक रथ पर बैठकर अपने स्थान पर चली गई। इस कथन से यह भली-भाँति सिद्ध हो जाता है कि शिवानन्दा को पति की आज्ञा पालन करने से धर्म की प्राप्ति हुई। और साथ ही जो सूत्रकर्ता ने "धम्मंसुच्चा निसम्म हट्ठ" श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 151 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy