________________ (5) वित्तिकान्तरेणं (वृत्तिकान्तरेण) वृत्ति का अर्थ है—आजीविका और कान्तार का अर्थ है—कठिनाई, साधारणतया कान्तार शब्द का अर्थ अरण्य या जंगल होता है, किन्तु यहाँ इसका अर्थ अभाव या कठिनाई है। आजीविका सम्बन्धी कष्ट आ पड़ने पर अथवा अभावग्रस्त होने पर ऐसा करने की छूट है। वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं ___ 'वित्तिकान्तारेणं' त्ति वृत्तिः–जीविका तस्याः कान्तारम् अरण्यं तदिव कान्तारं क्षेत्रं कालो वा वृत्तिकान्तार-निर्वाहाभाव इत्यर्थः, तस्मादन्यत्र निषेधो दानप्रणामादेरिति-प्रकृतमिति / आनन्द ने घर आकर अपनी पत्नी शिवानन्दा से भी भगवान महावीर के पास जाकर व्रत ग्रहण करने का अनुरोध किया, इससे प्रतीत होता है,कि उसकी पत्नी भी एक समझदार गृहिणी थी। आनन्द ने स्वयं उपदेश वा आदेश देने के स्थान पर उसको भगवान के पास भेजना उचित समझा जिससे कि उस पर साक्षात् रूप से भगवान के त्याग-तपस्या एवं ज्ञान का प्रभाव पड़े, और वह स्वयं समझपूर्वक व्रतों को ग्रहण कर सके। शिवानन्दा का भगवान के दर्शनार्थ जाना— मूलम् तए णं सा सिवनंदा भारिया आणंदेण समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ तुट्ठा कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—“खिप्पामेव लहुकरण" जाव पज्जुवासइ॥ 56 // छाया ततः सा शिवानन्दा भार्या आनन्देन श्रमणोपासकेन एवमुक्ता सती हृष्टतुष्टा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दापयति शब्दापयित्वैवमवादीत्–“क्षिप्रमेव लघुकरण' यावत् पर्युपास्ते / शब्दार्थ तए णं इसके अनन्तर, सा—उस, सिवनंदा भारिया शिवानन्दा भार्या ने, आणंदेणं समणोवासएणं—आनन्द श्रमणोपासक के द्वारा, एवं वुत्ता समाणा—इस प्रकार कहे जाने पर, हट्ट तुट्ठा हष्ट-तुष्ट होकर, कोडुम्बियपुरिसे—कौटुम्बिक पुरुषों को, सद्दावेइ–बुलाया, सद्दावित्ता और बुलाकर, एवं वयासी इस प्रकार कहा कि, खिप्पामेव लहुकरण शीघ्र ही लघुकरण रथ तैयार करके लाओ, जाव—यावत् उसने भगवान की, पज्जुवासइ—पर्युपासना की। .. भावार्थ—आनन्द गाथापति के उत्तम वचन सुनकर, शिवानन्दा अतीव हृष्ट-तुष्ट हुई और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार बोली कि तुम शीघ्र ही लघुकरण रथ अर्थात् जिसमें शीघ्र चलने वाले बैल जुते हुए हों ऐसे धार्मिक रथ को तैयार करके लाओ, मुझे भगवान महावीर के दर्शनार्थ जाना है। इस प्रकार वह भगवान के पास पहुंची और उनकी पर्युपासना की। ___ भगवान महावीर द्वारा धर्म प्रवचनमूलम् तएणं समणे भगवं महावीरे सिवनंदाए तीसे य महइ जाव धम्मं कहेइ॥ 60 // श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 150 | आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन,