________________ 2. सामायिक में स्थिर आसन से न बैठना, स्थान तथा आसन बदलते रहना अथवा अन्य प्रकार से चपलता प्रकट करना 'चलासन' दोष है। 3. सामायिक में दृष्टि स्थिर न रखना, इधर-उधर देखते रहना 'चलदृष्टि' दोष है। 4. सामायिक में सावध अर्थात् दोष युक्त कार्य करना ‘सावद्य-क्रिया' दोष है, घर की रखवाली करना, कुत्ते, बिल्ली को भगाना आदि सावद्य क्रियाएँ हैं। 5. सामायिक में दीवार आदि का सहारा लेकर बैठे या खड़ा रहे तो 'आलंबन' दोष है। 6. सामायिक में बिना प्रयोजन हाथ-पैर आदि संकोचे अथवा पसारे तो 'आकुंचन-प्रसारण' दोष / 7. सामायिक में हाथ-पैर आदि मोड़े अथवा अंगड़ाई ले तो 'आलस्य' दोष / 8. सामायिक में हाथ एवं पैरों की अंगुलियों को चटकाए तो 'मोटन' दोष / 6. सामायिक में मैल उतारे तो 'मल' दोष / 10. गले अथवा गाल पर हाथ लगाकर शोकासन से बैठे तो 'विमासण' दोष / 11. सामायिक में नींद लेवे तो 'निद्रा' दोष / 12. सामायिक में बिना कारण दूसरे से 'वैयावच्च' अर्थात् सेवा सुश्रूषा करावे तो 'वैयावृत्य' दोष है। ___दसवां देशावकाशिक व्रत के अतिचारमूलम् तयाणंतरं च णं देसावगासियस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा—आणवणप्पओगे, पेसवणप्पओगे, सद्दाणुवाए, रूवाणुवाए, बहियापोग्गलपक्खेवे // 54 // छाया—तदनन्तरं च खलु देशावकाशिकस्य श्रमणोपासकेन पंञ्चातिचारा ज्ञातव्या न समाचरितव्याः तद्यथा—आनयनप्रयोगः, प्रेष्यप्रयोगः, शब्दानुपातः, रूपानुपातः बहिःपुद्गल प्रक्षेपः / . शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, समणोवासएणं श्रमणोपासक को, देसावगासियस्स—देशावकाशिक व्रत के, पंच अइयारा—पाँच अतिचार, जाणियव्वा—जानने चाहिएं, न समायरियव्वा—परन्तु आचरण न करने चाहिएं, तं जहा–वे इस प्रकार हैंआणवणप्पओगे-आनयन प्रयोग, पेसवणप्पओगे—प्रेष्य प्रयोग, सद्दाणुवाए-शब्दानुपात, रूवाणुवाए रूपानुपात, बहियापोग्गलपक्खेवे—और बहिपुद्गल प्रेक्षप। . . श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 133 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन