SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो 4. गर्व-अहंकार (घमंड) सहित सामायिक करे तो 'गर्व' दोष / 5. राजादिक के भय से सामायिक करे तो ‘भय' दोष। 6. सामायिक में नियाणा (निदान) करे तो 'निदान' दोष। नियाणा या निदान का अर्थ है—धर्म साधना के फलस्वरूप किसी अमुक भोग आदि की कामना करना / 7. फल में संदेह रखकर सामायिक करे तो ‘संशय' दोष / 8. सामायिक में क्रोध, मान, माया, लोभ करे तो 'रोष' दोष / 6. विनयपूर्वक सामायिक न करे तथा सामायिक में देव-गुरु-धर्म की अविनय आशातना करे तो 'अविनय दोष'। 10. बहुमान—भक्तिभावपूर्वक सामायिक न करके, बेगार समझकर सामायिक करे तो 'अबहुमान' दोष। वचन के दस दोष 1. कुत्सित वचन बोले तो 'कुवचन दोष' / 2. बिना विचारे बोले तो ‘सहसाकार' दोष / 3. सामायिक में राग उत्पन्न करने वाले संसार सम्बन्धी गीत-ख्याल आदि गाए तो 'स्वछन्द' दोष। 4. सामायिक में पाठ और वाक्य को संक्षिप्त करके बोले तो ‘संक्षेप' दोष। . 5. सामायिक में क्लेशकारी वचन बोले तो 'कलह' दोष। 6. राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा, भोजनकथा इन चार कथाओं में से कोई कथा करे तो 'विकथा' दोष। 7. सामायिक में हंसी, मसखरी, ठठ्ठा, होहल्ला करे तो 'हास्य' दोष। 8. सामायिक में गड़बड़ करके जल्दी-जल्दी बोले या अशुद्ध पढ़े तो 'अशुद्ध' दोष / 6. सामायिक में उपयोग बिना बोले तो 'निरपेक्षा' दोष। 10. सामायिक में स्पष्ट उच्चारण न करके गुण-गुण बोले तो 'मम्मण' दोष / काय के बारह दोष 1. सामायिक में अयोग्य आसन से बैठे तो 'कुआसन' दोष। सहारा लेकर बैठना, पैर पर. पैर रखकर बैठना, गर्व के आसन से बैठना, लेटना आदि सामायिक में वर्जित है। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 132 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन .
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy