________________ यह व्रत मुनि को समस्त जीवन के लिए होता है, श्रावक इसे कुछ समय अर्थात् प्रचलित परम्परा के अनुसार दो घड़ी—४८ मिनट के लिए अंगीकार करता है और उस समय समस्त सावद्य अर्थात् पापयुक्त क्रियाओं का परित्याग करता है। इस व्रत के निम्नलिखित अतिचार हैं (1) मणदुप्पणिहाणे (मनोदुष्प्रणिधान) सामायिक के समय घरेलू बातों का चिन्तन करना / शत्रुमित्र आदि का बुरा-भला सोचना अथवा अन्य प्रकार से मन में राग-द्वेष सम्बन्धी वृत्तियों को लाना। (2) वयदुप्पणिहाणे (वचोदुष्प्रणिधान) असत्य बोलना, दूसरे को हानि पहुंचाने वाले अथवा कठोर वचन कहना एवं सांसारिक बातें करना। (3) कायदुप्पणिहाणे (कायदुष्प्रणिधान) ऐसी शारीरिक हलचल करना जिससे हिंसा की सम्भावना हो। (4) सामाइयस्स सइ-अकरणया (सामायिकस्यस्मृत्यकरणता) सामायिक करने के लिए निश्चित समय को भूल जाना अथवा सामायिक काल में यह भूल जाना कि मैं सामायिक में हूं। यह अतिचार प्रमाद के कारण होता है। - (5) सामाइयस्स अणवट्टियस्सकरणया (सामायिकस्य अनवस्थितस्य करणता)—सामायिक के सम्बन्ध में अनवस्थित रहना अर्थात् कभी करना, कभी न करना, कभी अवधि से पहले ही उठ जाना आदि। उपरोक्त अतिचारों में प्रथम तीन का कारण मुख्यतया अनाभोग या असावधानी है, और अन्तिम दो का प्रमाद। वृत्तिकार के शब्द निम्नलिखित हैं—'सामाइयस्स सइ अकरणय' त्ति सामायिकस्य सम्बन्धिनी या स्मृतिः-अस्यां वेलायां मया सामायिकं कर्त्तव्यं तथा कृतं तन्न वा इत्येवंरूपं स्मरणं, तस्याः प्रबलप्रमादतयाऽकरणंस्मृत्यकरणम्, 'अणवट्ठियस्स करणया' त्ति अनवस्थितस्य अल्पकालीनस्यानियतस्य वा सामायिकस्यकरण मनवस्थितकरणम्, अल्पकालकरणानन्तरमेवत्यजति यथाकथञ्चिद्वा तत्करोतीति भावः। इह चाद्यत्रयस्यानाभोगादिनातिचारत्वम् इतरद्वयस्य तु प्रमादबहुलतयेति / " शास्त्रों में मन के दस, वचन के दस तथा काया के बारह दोष बताए गए हैं जो सामायिक में वर्जित हैं। वे निम्नलिखित हैंमन के दस दोष 1. विवेक बिना सामायिक करे तो 'अविवेक दोष / ' 2. यश-कीर्ति के लिए सामायिक करे तो 'यशोवाँछा' दोष / ___3. धनादिक के लाभ की इच्छा से सामायिक करे तो 'लाभवाँछा' दोष। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 131 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन