________________ (5) उवभोग परिभोगाइरित्ते—(उपभोगपरिभोगातिरेक) श्रावक को खान, पान, वस्त्र, पात्र, मकान आदि भोग्य सामग्री पर नियन्त्रण रखना चाहिए, और उन्हें आवश्यकता से अधिक नहीं रखना चाहिए। इन्हें अनावश्यक रूप से बढ़ाना उपभोग-परिभोगातिरेक नाम का अतिचार है। इसका भी प्रमादाचरित के साथ सम्बन्ध है / सामायिक व्रत के पाँच अतिचारमूलम् तयाणंतरं च णं सामाइयस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइअकरणया, सामाइयस्स अणवट्ठियस्स करणया // 53 // छाया तदनन्तरं च खलु सामायिकस्य श्रमणोपासकेन पञ्चातिचारा ज्ञातव्या न समाचरितव्याः, तद्यथा—मनोदुष्प्रणिधानं, वचोदुष्प्रणिधानं, कायदुष्प्रणिधानं, सामायिकस्य * स्मृत्यकरणता सामायिकस्यानवस्थितस्य करणता। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, समणोवासएणं श्रमणोपासक़ को, सामाइयस्ससामायिक व्रत के, पंच अइयारा—पाँच अतिचार, जाणियव्वा—जानने चाहिएं, न समायरियव्वा-परन्तु आचरण न करने चाहिएं, तं जहा—वे इस प्रकार हैं—मणदुप्पणिहाणे—मनोदुष्प्रणिधान, वयदुप्पणिहाणे वचोदुष्प्रणिधान, कायदुप्पणिहाणे कायदुष्प्रणिधान, सामाइयस्स सइ अकरणयासामायिक का स्मृत्यकरणम्, सामइयस्स अणवट्ठियस्स करणया सामायिक को अस्थिरतापूर्वक करना। भावार्थ इसके पश्चात् श्रमणोपासक को सामायिक व्रत के पाँच अतिचार जानने चाहिएं। परन्तु आचरण न करने चाहिएं। वे इस प्रकार हैं 1. मनोदुष्प्रणिधान—मन का दुष्प्रयोग करना। 2. वचोदुष्प्रणिधान—वचन का दुष्प्रयोग करना। 3. कायदुष्प्रणिधान—काय का दुष्प्रयोग करना / 4. स्मृत्यकरणम्—सामायिक का विस्मृत होना अथवा सामायिक की अवधि का ध्यान न रखना। 5. अनवस्थित सामायिक करण–अव्यवस्थित रीति से सामायिक करना / टीका—सामायिक का अर्थ है जीवन में समता या समभाव का होना / जीवन में विषमता राग तथा द्वेष के कारण आती है। अतः इन्हें छोड़कर शुद्ध आत्मस्वरूप रमणता ही सामायिक है। आत्मा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्यरूप है। स्वस्वरूपानुसन्धान से इन गुणों का उत्तरोत्तर विकास होता है। अतः सामायिक से एक ओर राग-द्वेष आदि विकृतियां शान्त होती हैं और दूसरी ओर ज्ञान, दर्शन आदि गुणों की वृद्धि होती है। यहां वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं—“सामाइयस्स' त्ति समो—रागद्वेषवियुक्तो यः सर्वभूतान्यात्मवत्पश्यति तस्य आयः प्रतिक्षणमपूर्वापूर्वज्ञानदर्शनचारित्रपर्यायाणां निरुपमसुखहेतुभूतानामधःकृत चिन्तामणिकल्पद्रुमोपमानां लाभः समायः स प्रयोजनमस्यानुष्ठानस्येति सामायिकम् / " | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 130 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन .