________________ 1. इंगाल कम्मे—(अङ्गार कर्म) कोयले बनाने का धन्धा करना अथवा भट्टा चलाना, ईंट पकाना आदि ऐसे धन्धे करना जिनमें आग और कोयलों का अत्यधिक उपयोग हो / यद्यपि सूत्रकार ने अंगार कर्म से केवल कोयले बनाने का धन्धा ही लिया है, फिर भी अत्यधिक हिंसा के कारण ईंट पकाने आदि के धन्धे भी उसी में सम्मिलित कर लेने चाहिएं, वृत्तिकार ने इस पर नीचे लिखे अनुसार लिखा "इङ्गाल कम्मे ति अङ्गार करणपूर्वकस्तद्विक्रयः, एवं यदन्यदपि वह्नि समारम्भपूर्वकं जीवनमिष्टकाभाण्डकादिपाक रूपं तदङ्गारकर्मेति ग्राह्यं समान स्वभावत्वात्, अतिचारताचास्य कृतैतप्रत्याख्यानस्यानाभोगादिना अत्रैव वर्तमानादिति, एवं सर्वत्र भावना कार्या।" कर्मादानों की अतिचारता इस आधार पर है कि परित्याग करने पर भी कभी अनाभोगादि के द्वारा उक्त कर्मों का आचरण कर लिया जाए। जानबूझकर आचरण करने पर तो अनाचार ही माना जाता है। 2. वणकम्मे (वनकर्म) ऐसे धन्धे करना जिनका सम्बन्ध वन या जंगल के साथ हो, वृक्षों को काटकर लड़कियां बेचना, बस्ती आदि के लिए जंगल साफ करना अथवा जंगल में आग लगाना आदि उसके अन्तर्गत हैं। वृत्तिकार ने बीजपेषण अर्थात् चक्की चलाना आदि धन्धे भी इसमें सम्मिलित किए हैं। 3. साडी कम्मे—(शकटकर्म) शकट अर्थात् बैल गाड़ी, रथ आदि बनाकर बेचने का धन्धा / 4. भाड़ी कम्मे (भाटीकर्म) पशु-बैल-अश्व आदि को भाटक-भाड़े पर देने का व्यापार करना / 5. फोड़ी कम्मे (स्फोटीकर्म) खान खोदने, पत्थर फोड़ने आदि का धन्धा करना / 6. दन्त वाणिज्जे हाथी आदि के दांतों का व्यापार करना, उपलक्षण से चर्म आदि का व्यापार भी ग्रहण कर लेना चाहिए। 7. लक्ख वाणिज्जे-(लाक्षावाणिज्य) लाख का व्यापार करना। 8. रस वाणिज्जे (रसवाणिज्य) मदिरा आदि रसों का व्यापार करना। यद्यपि ईख एवं फलों के रस का भी व्यापार होता है किन्तु वह यहाँ नहीं लिया जाता। हिंसा एवं दुराचार की दृष्टि से मदिरा आदि मादक रस ही वर्जनीय हैं। 6. विस वाणिज्जे (विष वाणिज्य) विविध प्रकार के विषों का व्यापार करना। बन्दूक, तलवार, धनुष, बाण, बारूद आदि हथियार एवं हिंसक वस्तुएं भी इसमें सम्मिलित हैं। 10. केस वाणिज्जे—(केश वाणिज्य)—दास, दासी एवं पशु आदि जीवित प्राणियों के क्रय-विक्रय | श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 126 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन