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________________ रिश्ते-सम्बन्ध करवाना या उनको प्रेरित करना कि आपका लड़का अथवा लड़की विवाह योग्य हो गए हैं इनकी शादी कर दो। ऐसा करने से यदि लड़के अथवा लड़की का आपस में अयोग्य सम्बन्ध हो जाए तो उसका रिश्ता कराने वाले को ही उपालम्भ मिलता है कि अमुक ने यह सम्बन्ध स्थापित किया है। इसलिए यह श्रावक व्रत का अतिचार है। अतः गृहस्थ को ऐसे कार्य से बचना चाहिए। (5) काम-भोग तिव्वाभिलासे (कामभोगतीव्राभिलाषः)-गृहस्थ में रहकर वेद को उपशमन करने के लिए विवाह संस्कार किया जाता है। परन्तु कामासक्त होकर किसी कामजनक औषध, वाजिकरण आदि का प्रयोग करना अथवा किसी मादक द्रव्य का आसेवन करना जिससे मानसिक अभिलाषाएं तीव्र हों। इस प्रकार आचरण करना श्रावक के व्रत में अतिचार है। इच्छा-परिमाण व्रत के पाँच अतिचार मूलम् तयाणंतरं च णं इच्छा-परिमाणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा / तंजहा—खेत्तवत्थु-पमाणाइक्कमे, हिरण्ण सुवण्ण-पमाणाइक्कमे, दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे, धण-धन्न-पमाणाइक्कमे, कुविय-पमाणाइक्कमे // 46 // छाया—तदनन्तरं च खलु इच्छापरिमाणस्य श्रमणोपासकेन पञ्चातिचारा ज्ञातव्या न समाचरितव्याः, तद्यथा क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रमः, हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रमः, द्विपदचतुष्पंदप्रमाणातिक्रमः, धन-धान्य-प्रमाणातिक्रमः, कुप्यप्रमाणातिक्रमः। . शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, समणोवासएणं श्रमणोपासक को, इच्छापरिमाणस्स इच्छापरिमाण व्रत के, पंच अइयारा—पाँच अतिचार, जाणियव्वा—जानने चाहिएं, न समायरियव्वा—परन्तु आचरण न करने चाहिएं, तं जहा—वे इस प्रकार हैं खेत्तवत्थुपमाणाइक्कमे क्षेत्र वास्तुप्रमाणातिक्रम, हिरण्णसुवण्णपमाणाइक्कमे हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम, दुपयचउप्पयपमाणाइक्कमे— द्विपदचतुष्पदप्रमाणातिक्रम, धणधन्नपमाणाइक्कमे धनधान्यप्रमाणातिक्रम, कुवियपमाणाइक्कमे कुप्यप्रमाणातिक्रम / भावार्थ तदनन्तर श्रमणोपासक को इच्छापरिमाण व्रत के पाँच अतिचार जानने चाहिएं, परन्तु आचरण न करने चाहिएं। वे इस प्रकार हैं—१. क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रम-खेत और गृह सम्बन्धी मर्यादा का उल्लंघन। 2. हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम–सोना-चाँदी आदि मूल्यवान धातुओं की मर्यादा का उल्लंघन। 3. द्विपदचतुष्पद प्रमाणातिक्रम—दास-दास तथा पशु-सम्बन्धी मयादा का अतिक्रमण / 4. धन्नधान्यप्रमाणातिक्रमण मणि, मुक्ता एवं पण्य आदि धन्न तथा गेहूँ चावल आदि अनाज सम्बन्धी मर्यादा का उल्लंघन / 5. कुप्यप्रमाणातिक्रम—वस्त्र, पात्र, शय्या, आसन, आदि गृहोपकरण सम्बन्धी मर्यादा का उल्लंघन / श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 118 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन
SR No.004499
Book TitleUpasakdashang Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size9 MB
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