________________ छाया तदनन्तरं च खलु घृतविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्र शारदिकाद् गोघृतमण्डात्, अवशेषं घृतविधिं प्रत्याख्यामि। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, घयविहिपरिमाणं घृतविधि का परिमाण, करेइ–किया, नन्नत्थ सारइएणं गोघयमंडएणं—शरत्कालीन गोघृत के अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, घयविहिं—घृतविधि का, पच्चक्खामि—प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ तदनन्तर घृतविधि का परिमाण और शरत्कालीन दानेदार गोघृतमंड के अतिरिक्त अन्य घृतों का प्रत्याख्यान किया। ___टीका—सारइएणं गोघयमंडेणं-इस पर टीका में निम्नलिखित शब्द हैं—'सारइएण गोघयमण्डेणं' त्ति शारदिकेन शरत्कालोत्पन्नेन गोघृतमण्डेन गोघृतसारेण, अर्थात् शरत्काल में उत्पन्न उत्तम गोघृत का सार / यहां मण्डशब्द का अर्थ है—सारभूत अर्थात् शुद्ध और ताजा घी के ऊपर जो पपड़ी जम जाती है, उसके अतिरिक्त अन्य सब प्रकार के घृतों का प्रत्याख्यान किया। (17) शाकविधि मूलम् तयाणंतरं च णं सागविहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ वत्थु-साएण वा, चुच्चुसाएण वा, तुंबसाएण वा, सुत्थियसाएण वा, मण्डुक्कियसाएण वा, अवसेसं सागविहिं पच्चक्खामि // 38 // * छाया तदनन्तरं च खलु शाकविधि परिमाणं करोति, नान्यत्र वास्तुशाकाद् वा, चूच्चुशाकाद् वा, तुम्बशाकाद् वा, सौवस्तिक शाकाद् वा, मण्डूकिका शाकाद् वा, अवशेषं शाकविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, सागविहिपरिमाणं शाकविधि का परिमाण, करेइ–किया। वत्थुसाएण वा बथुआ, चुच्चुसाएण वा-चूच्चु, तुम्बसाएण वा घीया या लौकी, सुत्थियसाएण वा–सौवस्तिक, मण्डुक्कियसाएण वा—और, मण्डूकिक-भिंडी के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, सागविहिं—शाकों का, पच्चक्खामि—प्रत्याख्यान करता हूं। . भावार्थ इसके बाद शाकविधि का परिमाण किया और बथुआ, चूच्चु, घीया, सौवस्तिक और मण्डूकिक के अतिरिक्त अन्य शाकों का प्रत्याख्यान किया / (18) माधुरकविधि मूलम् तयाणंतरं च णं माहुरयविहि परिमाणं करेइ / नन्नत्थ एगेणं पालंगामाहुरएणं, अवसेसं माहुरयविहिं पच्चक्खामि // 36 // छाया—तदनन्तरं च खलु माधुरकविधि परिमाणं करोति। नान्यत्रैकस्मात् पालंगमाधुरकात्, श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 103 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन