________________ (12) भोजन विधि मूलम् तयाणंतरं च णं भोयणविहि परिमाणं करेमाणे, पेज्जविहि परिमाणं करेइ / नन्नत्थ एगाए कट्ठपेज्जाए, अवसेसं पेज्जविहिं पच्चक्खामि // 33 // ___ छाया—तदनन्तरं च खलु भोजन विधि परिमाणं कुर्वन् पेयविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्रैकस्याः काष्ठपेयात् अवशेषं पेयविधिं प्रत्याख्यामि। ___ शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, भोयणविहिपरिमाणं भोजनविधि का परिमाण, करेमाणे करते हुए, पेज्जविहिपरिमाणं—पेय वस्तुओं का परिमाण, करेइ–किया। एगाए–एक, कट्ठपेज्जाए-मूंग तथा घी में भुने हुए चावल आदि से बने पेय-विशेष के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, पेज्जविहिं—पेय पदार्थों का, पच्चक्खामि–प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ--इसके पश्चात् भोजनविधि का परिमाण करते हुए सर्व प्रथम पेय वस्तुओं का परिमाण किया और मूंग अथवा चावलों से बने हुए तत्कालीन एक पेयविशेष के अतिरिक्त अन्य पेय पदार्थों का प्रत्याख्यान किया। ___टीका कट्टपेज्जाए इस पर वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं—मुद्गादियूषो घृत तलिततण्डुल पेया वा अर्थात् मूंग आदि का पानी अथवा घी में तले हुए चावलों द्वारा बनाया गया सूप, कहीं-कहीं काष्ठपेय का अर्थ कांजी किया गया है। आयुर्वेद में त्रिफला आदि के काढे को भी काष्ठपेय कहते (13) भक्ष्यविधि मूलम् तयाणंतरं च णं भक्खविहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेहिं घय पुण्णेहिं खण्डखज्जएहिं वा, अवसेसं भक्खविहिं पच्चक्खामि // 34 // - छाया तदनन्तरं च खलु भक्ष्यविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्रैकेभ्यः घृतपूर्णेभ्यः खण्डखायेभ्यो का, अवशेषं भक्ष्यविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, भक्खविहिपरिमाणं भक्ष्यविधि अर्थात् पक्वान्नों का परिमाण, करेइ–किया, एगेहिं—एक, घयपुण्णेहिं खंड खज्जएहिं वा घेवर तथा खाजे के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, भक्खविहिं पच्चक्खामि भक्ष्यविधि का प्रत्याख्यान करता ___ भावार्थ-इसके बाद भक्ष्यविधि अर्थात् पक्वान्नों का परिमाण किया और घेवर तथा खाजे के अतिरिक्त अन्य पक्वान्नों का प्रत्याख्यान किया। श्री उपासक दश / 101 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन