________________ टीका—'सुद्धपउमेणं....दामेणं वा' प्रतीत होता है, उन दिनों मालती या चमेली के फूलों की माला पहनने और हाथ में श्वेत कमल को रखने का रिवाज था। मुगलकालीन चित्रों में भी हाथ में फूल मिलता है। (10) आभरणविधि मूलम् तयाणंतरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्थ मट्ठकण्णेज्जएहिं नाम मुद्दाए य, अवसेसं आभरण विहिं पच्चक्खामि॥ 31 // छाया तदनन्तरं च खलु आभरणविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्र मृष्टकार्णेयकाभ्यां नाममुद्रायाश्च अवशेषमाभरणविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, आभरणविहि परिमाणं—आभरणविधि का परिमाण करेइ–किया, मट्ठकण्णेज्जएहिं नाम मुद्दाए य—उज्ज्वल कुण्डलों तथा नाम. मुद्रिका के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब आभरणविहिं—आभरणों का पच्चक्खामि-प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ तदनन्तर आभरणविधि का प्रत्याख्यान किया और स्वर्ण कुण्डल तथा अपने नाम वाली मुद्रा (अंगूठी) के अतिरिक्त अन्य सब आभूषणों का प्रत्याख्यान किया। टीका—मट्ठकण्णेज्जएहिं मृष्ट का अर्थ है शुद्ध सोने के बने हुए बिना चित्र के / वृत्तिकार के शब्द निम्नलिखित हैं मृष्टाभ्यामचित्रवद्भ्यां कर्णाभरणविशेषाभ्याम्। , (11) धूपविधि मूलम् तयाणंतरं च णं धूवणविहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ अगरु तुरुक्क धूवमादिएहिं, अवसेसं धूवणविहिं पच्चक्खामि // 32 // छाया—तदनन्तरं च खलु धूपनविधि परिमाणं करोति / नान्यत्रागुरुतुरुष्कधूपादिकेभ्यः, अवशेष धूपनविधिं प्रत्याख्यामि। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, धूवणविहि परिमाणं करेइ-धूपविधि का परिमाण किया और, नन्नत्थ अगुरु तुरुक्क धूवमाइएहिं—अगुरु, लोबान एवं धूप आदि के सिवाय, अवसेसं—अन्य सब, धूवणविहिं धूपनीय वस्तुओं का पच्चक्खामि–प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ इसके पश्चात् धूपन विधि का परिमाण किया और अगुरु, लोबान, धूप आदि के अतिरिक्त अन्य धूप के काम आने वाली वस्तुओं का परित्याग किया। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 100 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन