________________ टीका—खोमजुयलेणं त्ति इस पर वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं—'कासिक वस्त्र युगलादन्यत्र' अर्थात् कपास के बने हुए एक जोड़े के अतिरिक्त / क्षोम शब्द का अर्थ कपास या अतसी (अलसी) आदि से बना हुआ वस्त्र है। यहां कपास अर्थात् सूती वस्त्र को भी लिया गया है। युगल शब्द का अर्थ है दो। उन दिनों धोती के रूप में अधोवस्त्र तथा चद्दर-दुपट्टे आदि के रूप में उत्तरीय वस्त्र पहनने का रिवाज था। सिर पर मुकुट धारण किया जाता था, परन्तु वह वस्त्रों में नहीं गिना जाता था, अतः वस्त्र विधि में दो वस्त्रों का ही उल्लेख है। (8) विलेपनविधि मूलम् तयाणंतरं च णं विलेवणविहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ अगरुकुंकुमचंदणमादिएहिं, अवसेसं विलेवणविहिं पच्चक्खामि // 26 // छाया तदनन्तरं च खलु विलेपनविधि परिमाणं करोति। नान्यत्र अगरुकुंकुम- चन्दनादिभ्यः, अवशेषं विलेपनविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं तत्पश्चात्, विलेवणविहि परिमाणं विलेपन विधि का परिमाण, करेइ–किया। अगरुकुंकुमचंदणमादिएहिं—अगरु कुंकुम-चन्दन आदि के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं-- अन्य सब, विलेवणविहिं पच्चक्खामि विलेपनविधि का प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ-इसके अनन्तर विलेपन विधि अर्थात् लेप करने की वस्तुओं का परिमाण किया और अगरु, कुंकुम, चन्दन आदि के अतिरिक्त अन्य सब विलेपनों का प्रत्याख्यान किया। (6) पुष्पविधि मूलम् तयाणंतरं च णं पुष्फविहि परिमाणं करेइ / नन्नत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं, मालइ कुसुमदामेणं वा, अवसेसं पुप्फविहिं पच्चक्खामि // 30 // छाया तदनन्तरं च खलु पुष्पविधि परिमाणं करोति। नान्यत्रैकस्मात् शुद्धपद्मात्, मालती कुसुमदाम्नो वा, अवशेष पुष्पविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, पुष्फविहि परिमाणं—पुष्पविधि का परिमाण, करेइ किया और, एगेणं—एक, सुद्धपउमेणं श्वेत कमल, मालइ कुसुमदामेणं वा–तथा मालती के पुष्पों की माला के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, पुप्फविहिं—पुष्पों का, पच्चक्खामि–प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ इसके पश्चात् पुष्वविधि का परिमाण किया और श्वेत कमल तथा मालती के फूलों की माला के अतिरिक्त अन्य पुष्पों के धारण अथवा सेवन का प्रत्याख्यान किया। श्री उपासक दशांग सूत्रम् / 66 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन |