________________ तेल्लेहिं अवसेसं अब्भंगणविहिं पच्चक्खामि // 25 // छाया तदनन्तरं च खलु अभ्यङ्गनविधि परिमाणं करोति / नान्यत्र शतपासहस्रपाकाभ्यां तैलाभ्यामवशेषमभ्यंगनविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, अब्भंगणविहिपरिमाणं करेइ—अभ्यङ्गन अर्थात् मालिश करने के तेल आदि वस्तुओं का परिमाण निश्चित किया, सयपाग सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं शतपाक और सहस्रपाक तेलों के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, अब्भंगणविहिं पच्चक्खामि मालिश के तेलों का प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ तत्पश्चात् अभ्यङ्गनविधि अर्थात् मालिश के काम में आने वाले तेलों का परिमाण किया और शतपाक तथा सहस्रपाक नामक तेलों को छोड़कर अन्य सब मालिश के तेलों का प्रत्याख्यान करता हूं। टीका सयपाग सहस्सपागेहिं इस पर वृत्तिकार के निम्नलिखित शब्द हैं—द्रव्यशतस्य शतकं क्वाथशतेन सह यत्पच्यते कार्षापणशतेन वा तच्छतपाकम्, एवं सहस्रपाकमपि / अर्थात् जिस तेल को सौ वस्तुओं के साथ सौ बार पकाया जाता है अथवा जिसका मूल्य सौ कार्षापण है, उसे शतपाक कहते हैं, इसी प्रकार सहस्रपाक भी समझ लेना चाहिए / (5) उद्वर्तनविधि मूलम् तयाणंतरं च णं उव्वट्टणविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं सुरहिणा गंधट्टएणं, अवसेसं उव्वट्टणविहिं पच्चक्खामि // 26 // छाया तदनन्तरं च खुल उद्वर्तनविधि परिमाणं करोति। नान्यत्रैकस्मात्सुरभेर्गन्धाट्टकाद्, अवशेषमुद्वर्तनविधिं प्रत्याख्यामि। शब्दार्थ तयाणंतरं च ण—इसके अनन्तर, उव्वट्टणविहिपरिमाणं उद्वर्तनविधि अर्थात् उबटन का परिमाण करेइ–किया। एगेणं एक, सुरहिणा गंधट्टएणं सुगन्धित गन्धाटक, (पीठी) के नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, उव्वट्टणविहिं—उद्वर्तन विधि अर्थात् उबटनों का, पच्चक्खामि–प्रत्याख्यान करता हूं। ... भावार्थ तदनन्तर उबटनों का परिमाण किया और एक गेहूं आदि के आटे से बने हुए सुगन्धित उबटन के अतिरिक्त अन्य सब उबटनों का प्रत्याख्यान किया। टीका—गंधट्टएणं इस पर निम्नलिखित वृत्ति है—'गंधट्टएणं त्ति गन्ध द्रव्याणामुत्पलकुष्टादिनां अट्टओ त्ति चूर्णं गोधूम चूर्णं वा गन्धयुक्तं तस्माद् / ' अर्थात् नीलकमल, कुष्ट आदि औषधियों के चूर्ण श्री उपासक दशांग सूत्रम / 67 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन