________________ (2) दन्तधावन विधि मूलम् तयाणंतरं च णं दंतवण विहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं अल्ललट्ठी महुएणं, अवसेसं दंतवणविहिं पच्चक्खामि // 23 // छाया तदनन्तरं च खलु दन्तधावन विधि परिमाणं करोति। नान्यत्रैकस्मादामधुयष्ट्याः , अवशेषं दन्तधावनविधिं प्रत्याख्यामि / शब्दार्थ तयाणंतरं च णं इसके अनन्तर, दंतवणविहिपरिमाणं दन्तधावनविधि का परिमाण, करेइ–किया, एगेणं-एक, अल्ल लट्ठीमहुएणं-आर्द्र अर्थात् हरी, मधुयष्टि-मुलहटी के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं सव्वं अन्य सब, दंतवणविहिं पच्चक्खामि—दन्तधावनों का प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ इसके पश्चात् आनन्द ने दन्त-धावन विधि का परिमाण किया और एक हरी मधुयष्टि अर्थात् मुलहटी के अतिरिक्त अन्य दतुअन* का प्रत्याख्यान किया। (3) फलविधि मूलम् तयाणंतरं च णं फलविहि परिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं खीरामलएणं, अवसेसं फलविहिं पच्चक्खामि // 24 // छाया तदनन्तरं च खलु फलविधिपरिमाणं करोति / नान्यत्रैकस्मात् क्षीरामलकाद्, अवशेष फलविधिं प्रत्याख्यामि। शब्दार्थ तयाणंतरं च णं—इसके अनन्तर, फलविहिपरिमाणं करेइ–फलविधि का परिमाण किया, एगेणं—एक, खीरामलएणं क्षीरामलक अर्थात् दूधिया मीठे आमलक के, नन्नत्थ—अतिरिक्त, अवसेसं—अन्य सब, फलविहिं पच्चक्खामि—फलों का प्रत्याख्यान करता हूं। भावार्थ—इसके पश्चात् फलविधि का परिमाण किया और क्षीरामलक दूधिया आंवले के अतिरिक्त अन्य सब फलों का प्रत्याख्यान किया। टीका क्षीरामलक शब्द का अर्थ है दूधिया आंवला, जिसमें गुठली नहीं पड़ी है। प्राचीन समय में इसका प्रयोग सिर एवं आंखें आदि धोने के लिए किया जाता था। (4) अभ्यङ्गनविधि - मूलम् तयाणंतरं च णं अब्भंगणविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ सयपागसहस्सपागेहिं दातून—गृहस्थों को दातून करने का निषेध नहीं, इसकी मर्यादा ही है, मर्यादा के अतिरिक्त अन्य किसी का प्रयोग न करे। श्री उपासक दशांग सूत्रम् | 66 / आनन्द उपासक, प्रथम अध्ययन :