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________________ (61) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पानी भर लिया। फिर दूसरा शिखर फोड़ने लगे, तब उनमें से एक वृद्ध वणिक बोला कि अपना काम हो गया है, इसलिए दूसरा शिखर मत फोड़ो। इस प्रकार रोकने पर भी उन्होंने दूसरा शिखर फोड़ा। उसमें से सोना निकला। तब लोभ जागा। इस कारण से उस वृद्ध के रोकने पर भी उन्होंने तीसरा शिखर फोड़ा। उसमें से रत्न निकले। अब उस वृद्ध ने बहुत रोका, तो भी उन्होंने चौथा शिखर फोड़ा। उसमें से महाविकराल भयंकर दृष्टिविष सर्प निकला। उस सर्प ने सूर्य की ओर देख कर दृष्टिविष से सब को जला कर भस्म कर दिया। सिर्फ एक सुशिक्षा देने वाले वृद्ध पर दया कर उसे जीवित रखा। इस दृष्टान्त से यद्यपि तुम्हारे धर्माचार्य को इतनी संपदा प्राप्त हुई है, तो भी असन्तुष्ट होते हुए लोगों में मेरा अपवाद बोल कर वह मुझे रोषवंत कर रहा है। इसलिए मैं वहाँ आ कर मेरे तेज से सब को जला कर भस्म कर दूंगा। तुम उतावल से जा कर तुम्हारे धर्माचार्य से यह बात कह दो। उस वृद्ध वणिक की तरह मैं सिर्फ तुम्हें ही जिन्दा रखेंगा। यह बात सुन कर आनन्दमुनि ने भयभ्रान्त हो कर भगवंत के पास आ कर सब समाचार कह सुनाये। तब भगवन्त ने कहा कि हे आनन्द ! तुम गौतमप्रमुख सब साधुओं से कह दो कि यहाँ मेरा कुशिष्य गोशालक आयेगा। वह उपसर्ग करेगा, इसलिए तुम लोग उसके साथ भाषण मत करना। यदि बोलोगे तो वह जला कर भस्म कर देगा। इसलिए इधर उधर टले रहना। यह सुन कर सब साधु एकान्त में बैठे रहे। तथापि सर्वानुभूति और सुनक्षत्र ये दो साधु भगवन्त के पास ही रहे। ___ . इतने में गोशालक आ कर भगवान से कहने लगा कि हे काश्यप! तुम कहते हो कि मेरा शिष्य गोशालक है, यह बात सही है। पर तुम्हारा शिष्य जो गोशालक था, वह तो मर चुका है और मैं अन्य हूँ। मात्र उस गोशालक का शरीर परीषह सहन करने जैसा था, इसलिए मैंने उसके शरीर में प्रवेश किया है। यह सुन कर भगवान बोले कि अरे गोशालक! कोई चोर चोरी कर के भागा हो और उसके पीछे लोग लगे हों तो उन्हें देख कर वह चोर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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