________________ (62) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध भागने में असमर्थ होने पर एक तिनका ले कर स्वयं को ढंकने के लिए आड़ रखे और मन में यह समझे कि अब मुझे कोई देख नहीं सकेगा, तो क्या इससे वह छिपा रह सकेगा? वैसे ही तू भी मेरे आगे कैसे छिपा रहेगा? तू वही मेरा शिष्य गोशालक है। यह सुन कर गोशालक क्रोध कर के भगवान से कहने लगा कि अरे! तुम जिन्दे रहोगे तब तक मुझे सुख नहीं होगा। ऐसे तुच्छ बोल सुन कर सुनक्षत्र मुनि बोले कि अरे गोशालक! तू अपने गुरु को जवाब देता है ? इससे तो तू संसार में अनन्त भवभ्रमण करने का काम करता है। मुनि इतना बोले ही थे कि गोशालक ने उन पर तेजोलेश्या छोड़ दी। इससे वे मुनि जल कर भस्म हो गये। फिर गोशालक पुनः भगवान को कड़वे वचन बोलने लगा। तब सर्वानुभूति मुनि कुछ बोले; तो उन्हें भी तेजोलेश्या से जला कर भस्म कर दिया। ये दोनों साधु मृत्यु प्राप्त कर देवलोक गये। ___ अब भगवान ने गोशालक से कहा कि तू चोर की तरह अपने को क्यों छिपाता है? तब उसने भगवान पर भी तेजोलेश्या छोड़ी।, वह तेजोलेश्या भगवान को तीन प्रदक्षिणा दे कर पुनः गोशालक के शरीर में घुस गयी। इससे गोशालक जल गया। उसके ताप से सात रात तक विविध वेदना भोग कर वह मर गया। तेजोलेश्या के ताप से भगवान के शरीर में वेदना होने लगी। उन्हें लोहीठाण (खूनी दस्त) हुआ। रेवती श्राविका के घर से बीजोरापाक सिंह अणगार के द्वारा मँगा कर भगवान ने सेवन किया। इससे शरीर में शाता हुई। इस प्रकार जिनका नाम मात्र लेने से भी सब उपद्रव मिट जाते हैं, उन्हें भी महापीड़ा हुई। इस तरह तीर्थंकर को जिनपदप्राप्ति के बाद याने केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद उपसर्ग नहीं होता और वह हुआ। यह प्रथम आश्चर्य जानना। दूसरा अच्छेरा- इस वर्तमान चौबीसी में श्री मल्लीनाथ उन्नीसवें तीर्थंकर स्त्रीवेद के रूप में उत्पन्न हुए, उनका संबंध कहते हैं- इस जंबूद्वीप के श्री