________________ (47) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हैं। तुमने जो स्वप्न देखे हैं, उनका फल इस प्रकार है कि हमें धनलाभ होगा, पुत्रलाभ होगा और सुखलाभ होगा। अवश्य ही नौ महीने साढ़े सात दिन बीतने के बाद जिसके हाथ-पैर सुकुमार हैं, हीनांगरहित, संपूर्ण पाँच इन्द्रियों सहित जिसका शरीर है, लक्षण, व्यंजन और गुणों से सहित तथा मानोन्मान से युक्त संपूर्ण भला शरीर जिसका है, ऐसा पुत्र तुम्हारे होगा। अब लक्षण किसे कहते हैं सो कहते हैं पुरुष का जब जन्म होता है; तब उसके अंग में पुण्यरेखाप्रमुख रेखाएँ प्रकट होती हैं; उसे लक्षण कहते हैं। सहजं लक्षणं इति वचनात्। उसमें चक्रवर्ती तथा तीर्थंकरों के तो एक हजार आठ लक्षण होते हैं और बलदेव तथा वासुदेव के एक सौ आठ लक्षण होते हैं तथा सामान्य भाग्यवान पुरुषों के बत्तीस लक्षण होते हैं। उनके नाम कहते हैं- 1. छत्र, 2. पंखा, 3. धनुष्य, 4. रथ, 5. वज्र, 6. कछुआ, 7. अंकुश, 8. बावड़ी, 9. स्वस्तिक, 10. तोरण, 11. तालाब, 12. सिंह, 13, वृक्ष, 14. चक्र, 15. शंख, 16. हाथी, 17. समुद्र, 18. कलश, 19. प्रासाद, 20. मत्स्य, 21. यव, 22. यूप-यज्ञ का अंग, 23. स्तंभ, 24. कमंडल, 25. पर्वत, 26. चामर, 27. दर्पण, 28. बलद, 29. पताका, 30. लक्ष्मी, 31. माला और 32. मयूर। ये बत्तीस लक्षण पूर्वकृत पुण्य के योग वाले पुरुष के हाथ-पैरों के तलवे में होते हैं। इनके साथ एक हजार आठ लक्षण भी ऐसे ही उत्तम प्रकार के जान लेना। __ तथा पुनः अन्य प्रकार से बत्तीस लक्षण कहते हैं- जिसके नख, पैर, हाथ, जीभ, होंठ, तालु और आँखों के कोने ये सात रक्त हों- अच्छे हों, उस पुरुष को भाग्यवान जानना चाहिये। वह सप्तांग लक्ष्मी का भोग करता है। तथा बगल, छाती, गरदन तथा गले का मणका, नाक, नख और मुख ये छह जिसके ऊँचे हों, वह पुरुष सब प्रकार से उन्नति करता है। तथा दाँत, त्वचा, केश, अंगुली के पर्व याने अंगुली की रेखा और नख पतले होंसूक्ष्म हों, तो वह पुरुष बहुत धनवान होता है। तथा नेत्र, स्तनों के बीच का