________________ (46) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कोख में उत्पन्न हुए, उस रात्रि में देवानन्दा ब्राह्मणी कुछ सोते कुछ जागते अर्थात् अल्पनिद्रा में रहते हुए उदार, कल्याणकारी, उपद्रवरहित, धनकारी, मंगलकारी ऐसे चौदह महास्वप्न देख कर जाग गयी। उन चौदह सपनों के नाम कहते हैं- पहले सपने में हाथी देखा। दूसरे में वृषभ, तीसरे में सिंह, चौथे में लक्ष्मी, पाँचवें में फूलमाला, छठे में चन्द्र, सातवें में सूर्य, आठवें में ध्वजा, नौवें में कुंभ-कलश, दसवें में पद्म सरोवर, ग्यारहवें में क्षीरसमुद्र, बारहवें में देवविमान, तेरहवें में रत्नों का ढेर और चौदहवें में निर्धूम अग्नि; ये चौदह स्वप्न कल्याणकारी और महामंगल करने वाले देख कर जागती हुई हर्ष-सन्तोष को प्राप्त हुई। वह चित्त में आनन्दित हुई। उसका मन प्रेममग्न हो गया। उसे परम हर्ष उत्पन्न हुआ। ___जिसके मन में अपार हर्ष समाया हुआ है, जिसका मन परम सौम्य है, जिसके मन में हर्ष-उल्लास उत्पन्न हुआ है, मेघधारा से आहत कदंब- पुष्प जैसे विकसित होता है, वैसे जिसका रोम रोम विकसित हुआ है, ऐसी देवानंदा ने पूर्व में देखे हुए स्वप्नों को याद किया। उन्हें याद कर के शयनपलंग से उठी। उठ कर पादपीठ से नीचे उतरी। उतर कर न तो उतावल से और न ही धीमे धीमे, ऐसी दो गतियों के मध्य में ठहरती हुई राजहंसी की गति से चलते हुए जहाँ ऋषभदत्त ब्राह्मण था, वहाँ पहुँची। वहाँ पहुँच कर जय-विजय शब्द से ऋषभदत्त को बधाई दी। बधाई दे कर भद्रासन याने बाजोठ पर बैठी। फिर रास्ते में चलने की थकान मिटा कर, पसीना पौंछ कर, दोनों हाथ जोड़ कर, दसों नख मिला कर मस्तक पर अंजली चढ़ा कर कहने लगी कि हे स्वामिन् ! आज रात को मैने शय्या में कुछ सोतेकुछ जागते हाथी आदि चौदह स्वप्न देखे हैं। उनका फल क्या होगा? और वे किस प्रकार का कल्याण करने वाले होंगे? तब ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा के मुख से यह सुन कर अपने मन में बहुत प्रसन्न हुआ। जैसे जलधारा से कदंब का फूल खिलता है। वैसे उसकी रोमराजि विकसित हुई। वह स्वप्नों का अर्थ सोचने लगा। सोच कर उसने देवानंदा ब्राह्मणी से कहा- हे देवानुप्रिये ! तुमने जो स्वप्न देखे हैं; वे मंगलकारी एवं उदारकारी