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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (45) भोग कर श्री प्रोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा ले कर करोड़ वर्ष तक चारित्रपालन किया। इस प्रकार कुल चौरासी लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर के मृत्यु के बाद / / 23 / / चौबीसवें भव में वह शुक्र नामक सातवें देवलोक में सतरह सागरोपम की आयु वाले देव के रूप में उत्पन्न हुआ / / 24 / / वहाँ से च्यव कर पच्चीसवें भव में इसी भरत क्षेत्र में छत्रिका नगरी के जितशत्रु राजा की भद्रा रानी की कोख में पच्चीस लाख वर्ष की आयु ले कर पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। माता-पिता ने राजपुत्र का नाम नन्दन रखा। वहाँ चौबीस लाख वर्ष तक गृहस्थावस्था में रह कर फिर श्री पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा ले कर एक लाख वर्ष तक दीक्षा पालन कर यावज्जीव मासखमण कर के उसने बीस स्थानक तप की आराधना की। इससे तीर्थंकर नाम कर्म निकाचित उपार्जन कर अन्त में एक महीने का अनशन कर के वहाँ से काल कर / / 25 / / छब्बीसवें भव में वह दसवें प्राणत देवलोक में पुष्योत्तरावतंसक नामक विमान में बीस सागरोपम की आयु वाले देवरूप में उत्पन्न हुआ / / 26 / / देवानन्दा. ब्राह्मणी की कोख में वीर प्रभु का आगमन फिर वहाँ से च्यव कर मरीचि के भव में जो कुलमद किया था, उस नीच गोत्र कर्म के उदय से सत्ताईसवें भव में वह ऋषभदत्त ब्राह्मण की देवानन्दा नामक स्त्री की कोख में आ कर उत्पन्न हुआ। इस तरह प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने भरत चक्रवर्ती के आगे जो कहा था कि मरीचि का जीव तीर्थंकर होगा, सो निश्चय से हुआ।।२७।। अब भगवान श्री महावीर जिस समय देवानन्दा की कोख में अवतरित हुए, उस समय वे तीन ज्ञान सहित गर्भ में आये। उसमें 'मेरा देवलोक से च्यवन होगा', यह वे जानते थे; पर च्यवन समय का जो वर्तमान एक समय जो सूक्ष्म काल है; वह नहीं जानते थे और वहाँ से च्यवन होने के बाद 'मैं देवलोक से च्यव कर देवानंदा की कोख में उत्पन्न हुआ हूँ' यह जानते थे। अब जिस रात्रि में श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी देवानन्दा की
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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