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________________ (44) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध एक बार त्रिपृष्ठ के आगे नाटक हो रहा था। उस समय राजा को नींद आने लगी। तब उसने शय्यापालक से कहा कि जब मुझे नींद लग जाये तब इन नाटककारों को बिदा कर देना। पर उस शय्यापालक ने श्रोत्रेन्द्रिय के रस में लीन हो कर उन्हें गीतगान करने से रोका नहीं। इतने में त्रिपृष्ठ जागृत हो कर बोला कि अरे! इन नाटककारों को तूने छुट्टी क्यों नहीं दी? तब शय्यापालक ने कहा कि प्रभो! श्रोत्रेन्द्रिय के रस में लीन होने के कारण मैं छुट्टी देने में चूक गया। यह सुन कर त्रिपृष्ठ को क्रोध आ गया। उसने सीसा गरम करा के उसका गरम गरम रस उस शय्यापालक के कान में डलवाया। इससे वह मृत्यु प्राप्त कर नरक में गया। इस तरह वासुदेव के भव में अनेक बड़े बड़े पापोपार्जन कर के के चौरासी लाख वर्ष की आयु भोग कर, अस्सी धनुष्य प्रमाण शरीर का त्याग कर के मरने के बाद / / 18 / / उन्नीसवें भव में सातवीं नरक में नारकी के रूप में उत्पन्न हुआ।।१९।। वहाँ से मर कर बीसवें भव में सिंह हुआ / / 20 / / वहाँ से मर कर इक्कीसवें भव में चौथी नरक में मारकी के रूप में उत्पन्न हुआ।।२१।। ___ वहाँ से मर कर बहुत संसार-भ्रमण कर बाईसवें भव में रथपुर नगर में प्रियमित्र राजा की विमला रानी की कोख में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। माता-पिता ने उसका नाम विमल रखा। अनुक्रम से वह सर्व कलाओं में पारंगत हुआ। तब पिता ने उसे राज्य सौंप दिया। एक दिन वह वन में क्रीड़ा करने गया। वहाँ उसने हिरनों को बंधन से मुक्त किया। इस दया के प्रभाव से भद्र परिणाम के कारण उसने मनुष्यायु का बंध किया। फिर दीक्षा ले कर उग्र तप कर के चक्रवर्ती की पदवी उपार्जित की। अन्त में एक महीने का अनशन कर देह त्याग के पश्चात् / / 22 / / तेईसवें भव में पश्चिम महाविदेह में मूका नगरी के धनंजय राजा की धारिणी रानी की कोख में आ कर पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। माता ने चौदह सपने देखे। फिर पूर्ण मास में पुत्र का जन्म हुआ। तब माता-पिता ने बड़े महोत्सवपूर्वक उसका नाम प्रियमित्र रखा। उसने अनुक्रम से छह खंड जीत कर चक्रवर्ती की पदवी
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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