________________ (28) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध ध्रुवसेन राजा के पास गये। वहाँ जा कर राजा से कहा- 'हे राजन् ! तुम्हें शोकाक्रान्त हुआ जान कर नगर के सब लोग भी शोकाकुल हुए हैं। शरीर-धनादि सब अनित्य है, आयुष्य चंचल है और संसार असार है। संसार का ऐसा स्वरूप तुम जानते ही हो। जैन धर्म में अधिक शोक करना अनुचित माना गया है। इसलिए शोक निवारण कर के पंचमी के दिन पर्युषण पर्व होने से धर्मशाला में पधारो, तो कल्पसूत्र का वाचन करें। श्री भद्रबाहुस्वामी ने नौवें पूर्व में से इस कल्पसूत्र को उद्धरित किया है और यह महामांगलिक तथा प्राचीन कर्म का क्षय करने वाला है, तब पंचमी का दिन पुत्र-निधन के शोक की समाप्ति का दिन था तथा उस दिन इन्द्र महोत्सव भी था; इसलिए राजा ने कहा कि छट्ठ या चौथ का दिन निश्चित करें तो मैं आ सकता हूँ; पर पंचमी के दिन तो मैं नहीं आ सकता। तब 'अंतरावासे कप्पत्ति' यह सत्रपाठ ध्यान में ले कर कारण विशेष से गुरु ने चौथ की स्थापना कर के चौथ के दिन कल्पसूत्र पढ़ना कबूल किया। ... ___कालिकाचार्य से आमंत्रित बलमित्र और भानुमित्र अपने इन दो भानजों के साथ बडनगर का ध्रुवसेन राजा सभा सहित धर्मशाला में पहुँचा। उस समय प्रभावनासहित महोत्सवपूर्वक सब लोगों के सामने गुरु ने नववाचनायुक्त श्री कल्पसूत्र का वाचन किया। उस दिन से चौथ के दिन पर्युषण करने की परंपरा चली है और कई गच्छों में अब भी पंचमी के दिन पर्युषण करते हैं। इस प्रकार उस दिन से महोत्सवपूर्वक प्रभावनासहित सब लोगों की उपस्थिति में कल्पसूत्र पढ़ने की प्रवृत्ति चली। सो श्री गुरुपरंपरा से आज तक चली आ रही है तथा उसके अनुसार सब जगह कल्पसूत्र पढ़ा जाता है। इसके 1. एक प्रति में ऐसा लिखा है कि- बड़नगर में गुरुजी का चातुर्मास था। पर्युषण नज़दीक आते ही ध्रुवसेन राजा का इकलौता पुत्र दाहज्वर से पीड़ित हो गया। इस कारण से चिन्तातुर राजा गुरु को वन्दन करने नहीं जा सका तथा धर्म ध्यान में प्रवृत्ति करने वाले बहुत से लोग पर्युषण पर्व में दिखाई नहीं दिये। तब गुरु ने इसका कारण ज्ञात किया और राजा को शोकमग्न जान कर वे स्वयं राजसभा में पहुँचे। वहाँ राजा को धर्मोपदेश दे कर समझाया। फिर महान लाभ का कारण जान कर मांगलिक के निमित्त कल्पसूत्र की प्रथम वाचना की। उसे सुन कर राजा के पुत्र को सुख चैन मिला। ऐसा करते करते नौ वाचनाओं के श्रवण से.उसका संपूर्ण दाहज्वर समाप्त हो गया। इससे हर्षवन्त हो कर राजा ने महान महोत्सव किया। धर्म की महिमा