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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (29) वाचन के अधिकारी योगवहन करने वाले साधु-मुनिराज हैं और इसे सुनने का अधिकार चतुर्विध श्रीसंघ को है। कल्पसूत्र के वाचन-श्रवण से लाभ ___ इस सूत्र के वाचन से इसके अक्षर-माहात्म्य के कारण साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का कल्याण होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। इस पर कथा कहते हैं- किसी एक वृद्धा का पुत्र जंगल में गायें चराने गया। वहाँ उसे साँप डॅसा। इससे वह मूर्छित हो गया। लोगों के मुँह से यह समाचार सुन कर वह वृद्धा जंगल में गयी। वहाँ पुत्र को मूछित देख कर वह मोहवश पुत्र का नाम बार बार स्मरण करने लगी। रे हंस ! रे परम हंस!! इस तरह चार प्रहर तक उसने पुकार की। इससे उसके पुत्र का ज़हर उतर गया। वह. अच्छा हो गया। . सुबह के समय माता-पुत्र दोनों गाँव में पहुँचे। नगर के सब लोग चकित रह गये। तब सँपेरों ने वृद्धा से पूछा- तुमने कौन सा उपचार किया, जिससे तुम्हारा पुत्र निर्विष हो गया? तब उसने कहा- मैं कोई मंत्र नहीं जानती तथा औषधि भी नहीं जानती। मैं तो सारी रात 'रे हंस! रे परम हंस!! इस प्रकार रुदन करती रही। इससे मेरा बेटा निर्विष हो गया। मेरी पुकार. देवों ने सुनी। देवप्रयोग से वह निर्विष हुआ। यह सुन कर सँपेरा बोला कि यह मंत्र सत्य है। अक्षर-प्रयोग से मंत्र उत्पन्न होता है। वैसे ही यह कल्पसिद्धान्त पढ़ने से, सुनने से जन्म जन्म के पाप दूर हो जाते हैं। इतना बड़ा माहात्म्य कल्पसूत्र के अक्षरों का जानना। यह कल्पसूत्र सुनने से अनेक गुण-लाभ होते हैं तथा अनेक मांगलिकों की वृद्धि होती है। पर्युषण में साधु-श्रावकों के करने योग्य धर्मकार्य - परि याने सामस्त्येन सर्व प्रकार से और उषणा याने सेवना आराधना में वृद्धि हुई। राजा ने गुरु से प्रार्थना की कि श्रीसंघ के मांगलिक निमित्त यह कल्पसूत्र हर वर्ष श्रीसंघ को पढ़ कर सुनाया जाये। उस दिन से कल्पसूत्र चतुर्विध श्रीसंघ के सन्मुख पढ़ कर सुनाने की प्रवृत्ति चली है। उसके अनुसार वर्तमान में भी श्रावकों के आग्रह से कल्पसूत्र की वाचना साधु-मुनिराज करते हैं।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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