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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सुन कर गुरु ने कहा- 'मैंने मना किया था, फिर भी तुम नाटक देखने के लिए क्यों खड़े रहे?' तब वह वक्रता से बोला- 'आपने तो नट का नाटक. देखने से रोका था। उस समय नर्तकी का नाटक देखने से क्यों नहीं रोका? इसमें मेरा क्या दोष है? आपका ही दोष है।' इस तरह वक्रता से गुरु को ही उलाहना दिया। वक्रता से संबंधित यह प्रथम दृष्टान्त जानना। वक्र-जड़ से संबंधित अन्य लोकोक्त दृष्टान्त कहते हैं- किसी एक सेठ का पुत्र बड़ा दुर्विनीत था। वह अपने माता-पिता के साथ कलह किया करता था। माता-पिता उसे बहुत समझाते; पर वह किसी का कहा मानता नहीं था। फिर परिवारजनों ने उसे समझाया कि माता-पिता से प्रतिवाद नहीं करना चाहिये। तब उसने कहा कि आगे से मैं माता-पिता को जवाब नहीं दूंगा। एक बार माता-पिता आदि सब लोग उसे घर सौंप कर किसी काम से अन्यत्र गये। पिता की सीख को ध्यान में रख कर पुत्र दरवाजा बन्द कर खाट पर सो गया। कुछ देर बाद पिता घर लौटे। उन्होंने बहुत आवाज दी। लड़का खाट पर बैठे बैठे सुनता रहा, पर बोला नहीं और दरवाजा भी नहीं खोला। अन्त में उसका पिता दीवार पर चढ़ कर घर में गया। उसने देखा कि पुत्र खाट पर बैठे बैठे हँस रहा है। गुस्से में आ कर पिता ने उसे मारा-पीटा। फिर पूछा- इतनी आवाज देने पर भी तूने जवाब क्यों नहीं दिया? दरवाजा क्यों नहीं खोला? तब लड़के ने कहा- 'आपने ही तो मुझे सिखाया था कि बड़ों को जवाब नहीं देना चाहिये। इसमें मेरी क्या गलती है?' तब पिता ने कहा- 'हे मूर्ख! काम हो तब तो बोलना ही चाहिये न ?' यह सुन कर लड़के ने कहा अब मैं काम होगा, तब बोलूँगा। _ एक बार सेठ लोगों के बीच बैठे थे। इधर सेठानी ने घर में आटे की राबडी बनायी। उसने लड़के से कहा कि तू तेरे पिता को बुला ला, जिससे वे राबडी पी कर काम पर जा सकें। पुत्र पिता के पास गया। पिता बहुत से लोगों के बीच बैठे थे। वहाँ जा कर वह ऊँची आवाज में कहने लगा- 'पिताजी! घर पर राबडी तैयार है। मेरी माँ ने कहा है कि आप एक बार नाश्ता कर लें। फिर सुखपूर्वक काम-काज करें।' यह सुन कर सेठ शरमिंदा हो कर वहाँ से उठे। फिर पुत्र को एकान्त में समझाते हुए कहा- 'हे कुपुत्र! लोगों में अपनी इज्जत खराब हो, इस प्रकार तू क्यों बोला? तब पुत्र ने कहा- आपने ही तो मुझे सिखाया था। फिर मैं क्या करूँ?' तब पिता ने कहा- 'फिर कभी यदि ऐसा कोई काम हो तो धीमी आवाज में बोलना।' पुत्र ने कहा- 'ठीक है। आगे से धीमी आवाज में बोलूंगा।'
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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