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________________ (14) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध साधु ने मिच्छा मि दुक्कडं दिया। अब तीसरा दृष्टान्त कहते हैं- सोरठ देश में एक ब्राह्मण रहता था। उसका पुत्र ससुराल जाने लगा, तब उसके पिता ने उसे सीख दी कि बेटे! एक बार 'हाँ' कहना और एक बार 'ना' कहना। पिता की सीख धारण कर के वह ससुराल पहुँचा। वहाँ जब सास-ससुर ने पूछा कि भट्टजी! आप आ गये? तब उसने कहा- हाँ। फिर उन्होंने पूछा- घर में कुशल तो है? तब उसने कहा-ना। फिर पूछा- क्या तुम्हारे पिता स्वर्गवासी हो गये? तब उसने कहा-हाँ। फिर उन्होंने पूछा- उनके लिए कुछ खर्चा किया? तब उसने कहा-ना। इस पर उन्होंने कहा- तुम बिलकुल मूर्ख हो। तब उत्तर में उसने कहा-हाँ। इतनी बातचीत के बाद वे सब ब्राह्मण मिल कर काण के लिए गये। वहाँ जा कर देखा तो जवाँई के पिता वहाँ बैठे हुए थे। वे जिंदा थे। वे सब उनसे राम राम जुहार कर के मिले। फिर दामाद के पिता ने उनसे वहाँ अचानक आने का कारण पूछा। तब उन्होंने बताया कि आपके पुत्र ने आपके स्वर्गवास की बात हम से कही; इसलिए हम यहाँ आये हैं। इस पर पिता ने कहा कि वह लड़का मूर्ख है। ऐसे जीव को भी ऋजु याने भोला और जड़ याने मूर्ख कहा जाता है। प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के तीर्थ के साधु ऐसे जानने चाहिये। .. अन्तिम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी के साधु वक्र और जड़ होते हैं। इस पर दृष्टान्त कहते हैं- महावीरस्वामी के तीर्थ का कोई एक साधु स्थंडिल गया। वह बहुत देर से लौटा। गुरु ने जब उससे विलंब होने का कारण पूछा; तब वह वक्रता से कहने लगा कि बाहर जाने पर देर तो हो ही जाती है। इसमें मुझसे क्या पूछते हैं? फिर गुरु के जोर दे कर पूछने पर कहा कि नाटक करने वाले नाटक करते थे, सो देखने के लिए खड़ा रहा था। तब गुरु ने कहा - 'साधु को नाटक नहीं देखना चाहिये। नाटक देखने से तुम्हें पाप लगा है। इसलिए 'मिच्छा मि दुक्कडं' दो। तब शिष्य ने 'मिच्छा मि दुक्कडं' दिया। ___ कुछ दिन बाद फिर एक बार वह नर्तकी का नाटक देखने के लिए खड़ा रहा। इससे बहुत देर हो गयी। गुरु के कारण पूछने पर वह वक्रता से टेढ़े-मेढ़े उत्तर देने लगा, पर सच न बोला। गुरु ने जब बार-बार पूछा; तब उसने कहा कि नर्तकी का नाच देखने के लिए मैं खड़ा रहा था। यह
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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