________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (13) हे स्वामिन्! रास्ते में नर्तकी नृत्य कर रही थी। उसे देखने के लिए मैं खड़ा रहा। इस कारण से देर हो गयी। तब गुरु ने कहा- 'तुम्हें पहले मना किया था, फिर भी क्यों देखने के लिए खड़े रहे?' इस पर शिष्य जड़ता के कारण मूर्खता पूर्वक बोला- 'महाराज! आपने तो नट देखने के लिए मनाई की थी, नर्तकी देखने के लिए तो मनाई नहीं की थी।' तब गुरु बोले- 'हे महाभाग! नर्तकी तो नट से भी अधिक राग का कारण है, इसलिए उसे तो सर्वथा नहीं देखना चाहिये।' यह सुन कर शिष्य बोला- 'हे स्वामिन्! पहले मैं ऐसा नहीं समझा था। अब आगे से कभी नहीं देखूगा।' ___ इस दृष्टान्त में ऋजुता के कारण वह सत्य बोला और जड़ता के कारण वह इतना नहीं समझ सका कि यदि नट-दर्शन का त्याग किया है, तो नर्तकी-दर्शन का भी त्याग करना चाहिये। __ अब दूसरा दृष्टान्त बताते हैं- कोंकण देश के किसी एक वणिक ने कुटुंबपरिवार का त्याग कर के धर्म प्राप्त कर वैरागी हो कर किसी स्थविर के पास वृद्धावस्था में दीक्षा ली। सब लोग उसे कोंकण-साधु कहते थे। एक दिन स्थंडिलभूमि से लौट कर वह इरियावही प्रतिक्रमण करने लगा। उसमें काउस्सग्ग पारने में उसे बहुत समय लगा। तब गुरु ने पूछा- 'हे कोंकणिक साधु! काउसग्ग में तुम्हें इतनी देर क्यों लगी?' यह सुन कर वह ऋजुता से बोला- 'हे स्वामिन्! आज मैंने जीवदया का चिन्तन किया।' गुरु ने पूछा- 'तुमने किस प्रकार की जीवदया का चिन्तन किया' तब वह साधु बोला- 'जब मैं घर पर गृहस्थावस्था में रहता था, तब वर्षाकाल में खेत में वृक्षों को काट कर सफाई कर के जमीन को अग्नि से जला कर शुद्ध करता था। फिर अनाज बोता था। इससे मेरे घर में बहुत धान्य होता था और इसी कारण से मेरा परिवार सुखी रहता. था।' __ और अब तो मैंने दीक्षा ले ली है। मेरे बेटे आलसी हैं। वे खेती के बारे में कुछ नहीं जानते। इसलिए यदि वे आलसी हो कर घर में निश्चित बैठे रहेंगे और सूड नहीं करेंगे; तो धान्य पैदा नहीं होगा और वे बिचारे भूखे मरेंगे। हे स्वामिन्। मैंने इस प्रकार की जीवदया का चिन्तन किया।' इस तरह ऋजुता से वह सच बोला। यह सुन कर गुरु ने कहा- 'हे भद्र! तुमने अशुभ विचार किया है। खेती का व्यवसाय पाप के बिना नहीं होता, इसलिए सावध की अनुमोदना करना साधु को उचित नहीं है। अतः 'मिच्छा मि दुक्कडं दे कर शुद्ध हो जाओ।' यह सुन कर उस