________________ (424) ___ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 13. बरसात में चातुर्मास में रहे हुए स्थविरकल्पी साधुओं को तो जिसकी धारा रोकी नहीं जा सके ऐसा मेघ अखंडधारा से बरसता हो, तो गोचरी नहीं जाना चाहिये। यदि कोई साधु ग्लान हो अथवा अशक्त हो, एक-दो दिन का भूखा हो और अधिक भूख सहन करने की शक्ति न हो, तो एक सूती वस्त्र पर ऊनी वस्त्र ओढ़ कर थोड़े छींटे पड़ते हों, तो गोचरी जाना कल्पता है। यह अपवाद सूत्र है। तथा गृहस्थ के घर गोचरी जाने के बाद रह रह कर थोड़ा थोड़ा पानी बरसता हो, तो आराम में, उपाश्रय में, मंडप के नीचे तथा वृक्ष के नीचे आना कल्पता है तथा गृहस्थ के घर गोचरी गये हुए साधु को बरसात आ जाये तो, उसके घर जिस समय साधु आया, उस समय से पहले यदि भात उतरा हो और दाल बाद में उतरी हो, तो साधु भात वहोरे, पर दाल वहोरे नहीं और यदि दाल पहले उतरी हो और चावल बाद में उतरे हों, तो दाल वहोरे पर चावल वहोरे नहीं और यदि चावल तथा दाल दोनों पहले उतर गये हों, तो दोनों लेना कल्पता है और बाद में उतरें हों तो दोनों चीजें लेना नहीं कल्पता। ____ तथा गोचरी गये हुए साधु को आहार मिलने के बाद बरसात रह रह कर बरसती हो तो बाग में, उपाश्रय में, बँकी हुई जगह में अथवा पेड़ के नीचे आ कर प्राप्त आहार खा लेना चाहिये। पर आहार अधिक देर तक रखना नहीं और पात्र पोंछ कर, उन्हें इकट्ठे बाँध कर दिन रहते ही उपाश्रय में आ जाना चाहिये, पर रात को उपाश्रय के बाहर नहीं रहना चाहिये। बरसात में रहे हुए साधु को गृहस्थ के घर गोचरी जाने के बाद रह रह कर बरसात होने लगे, तो बागादिक में अथवा उपाश्रय में आ जाना चाहिये। पर बागादिक स्थान में एक साधु और एक साध्वी को, एक साधु और दो साध्वियों को, दो साधु और एक साध्वी को तथा दो साध्वी और दो साधुओं को (इन चार भंगों से) खड़े रहना नहीं कल्पता तथा पाँचवें भंग में दो साधु और दो साध्वियाँ हों और उनमें एक वृद्ध साध्वी हो तथा एक लघु साधुसाध्वी हो और जगह बहुत खुली हो तथा सब लोग देखते हों, ऐसी जगह