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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (423) 10. बरसात में रहा हुआ साधु जिसने मर्यादा की है कि पाँच दात पानी की और पाँच दात भोजन की लेना, पर यदि पानी की चार दात मिले और भोजन की पाँच दात मिले, पर उन पाँच दात में भोजन स्वल्प आया, उससे पेट भरे नहीं, तब वह विचार करे कि पानी की चार दात मिली हैं, पर. पाँच दात मिली नहीं हैं, तो अब एक दात भोजन में मिला लूँ, तो उसे ऐसा करना कल्पता नहीं है। जो जितना मिला, उतना ही खा कर संतोष करना चाहिये। पर दात अदल-बदल करना नहीं। वहोरते समय पात्र में मात्र एक ही चावल का दाना गिरे, तो वह एक दात जानना। इसी प्रकार सब अन्न एक साथ पात्र में गिर जाये, तो भी एक ही दात जान लेना। इसी प्रकार पानी का भी वहोरते समय यदि एक ही बिन्दु पात्र में गिरे, तो वह एक ही दात जानना और पानी की धारा खंडित न हुई हो, अस्खलित धार चलते हुए सम्पूर्ण पात्र भर जाये, तो भी एक दात समझना। परन्तु धार खंडित होने के बाद पुनः जो पानी पात्र में गिरता है, वह दूसरी दात कही जाती है। यह दात से संबंधित दसवीं समाचारी जानना। .. 11. वर्षाकाल में जिस उपाश्रय में साधु चौमासे के लिए रहा हो, उस स्थान से ले कर सात घर तक गोचरी के लिए नहीं जाना। गाँव में जीमन हो, तो कई आचार्य कहते हैं कि उपाश्रय सहित आठ घर तक नहीं वहोरना। यह संखडी से संबंधित ग्यारहवीं समाचारी जानना। 12. चौमासे में रहे हुए पाणिपात्रधारी (जिनकल्पी) मुनि को फुसार मात्र (अति सूक्ष्म) पानी बरसता हो, तो भी गृहस्थों के घर गोचरी जाना नहीं कल्पता। इसी प्रकार बिना ढंके स्थानक में गोचरी करना भी नहीं कल्पता। गोचरी करते अकस्मात् जल बरसने लगे, तो भुक्तावशिष्ट आहार को हाथ में ढंक कर और छाती या कक्षामूल में रख कर बँकी हुई जगह अथवा वृक्ष के मूल तल में आ कर यदि उसमें बरसात के छींटे न लगे हों, तो उपयोग में लेना कल्पता है। यदि पानी के छींटे लगे हों, तो उपयोग में लेना नहीं . कल्पता। यह जिनकल्पी मुनि के लिए गोचरी करने से संबंधित बारहवीं समाचारी जानना।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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