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________________ ___ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (425) में रहना कल्पता है। ऐसे ही चार भंग साधु के लिए श्राविका के साथ कहना तथा ऐसे ही चार भंग साध्वी के लिए श्रावक के साथ कहना। पूर्वोक्त पाँचवें भंग में एक स्थान पर रहना कल्पता है। यह स्थविरकल्पी के लिए गोचरी तथा साधु-साध्वी के एकत्र वास से संबंधित तेरहवीं समाचारी जानना। .. 14. बरसात में रहे हुए साधु अथवा साध्वी को किसी साधु के कहे बिना उसके लिए अशनादिक चार प्रकार का आहार लाना कल्पता नहीं है। ऐसा किसलिए? इसलिए कि उसकी इच्छा हो, तो वह आहार खाये और इच्छा न हो, तो न खाये। अतः कहे बिना आहार लाना नहीं। यह पूछे बिना आहार न लाने से संबंधित चौदहवीं समाचारी जानना। 15. बरसात में रहे हुए साधु-साध्वी को जब तक शरीर भीगा हुआ हो, तब तक अशनादिक चार आहारों में से कोई भी आहार करना नहीं कल्पता। ऐसा किसलिए? इसलिए कि अधिकतर सात स्थान भीगे हुए रहते हैं। उनमें एक हाथ, दूसरा हाथ की रेखा, तीसरा नख, चौथा नख के सिरे, पाँचवाँ मुँहारे (भौहें), छठा निचले होंठ और निचला दाढ़ी का स्थान और सातवाँ ऊपर के होंठ और ऊपर की मूंछे। ये सातों गीले न हों, बिल्कुल सूख गये हों, तब चार प्रकार का आहार करना कल्पता है। यह आर्द्र शरीर से आहार न करने से संबंधित पन्द्रहवीं समाचारी जानना। 16. चातुर्मास में स्थित साधु-साध्वियों को सूक्ष्म आठ वस्तुएँ बारबार सूत्रज्ञान से जाननी चाहिये। उन्हें अपनी आँखों से देखना चाहिये और उनकी बार-बार पडिलेहना करनी चाहिये। उनमें एक प्राण सूक्ष्म, दूसरा पनक सूक्ष्म, तीसरा बीज सूक्ष्म, चौथा हरित सूक्ष्म, पाँचवाँ पुष्प सूक्ष्म, छठा अंड सूक्ष्म, सातवाँ गृह सूक्ष्म और आठवाँ स्नेह सूक्ष्म ये आठ सूक्ष्म जानना। ____ (1) इनमें प्रथम प्राण सूक्ष्म याने झीने झीने जंतु। काले, नीले, लाल,पीले और सफेद ऐसे पाँच रंग वाले अनुद्धरी (कुंथुआ) जीव होते हैं। ये जीव एक स्थान पर बिना हिले-डुले रहते हैं। ज्ञानरहित छद्मस्थ साधुसाध्वियों को नजर से दिखाई नहीं देते। इसलिए इन जीवों को बार बार
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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