________________ (420) . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 2. वर्षाकाल में चातुर्मास रहे हुए साधु और साध्वी को पाँच कोस (सोलह किलोमीटर) का चारों ओर अवग्रह रखना चाहिये, पर अवग्रह से बाहर हाथ सूखे वहाँ तक भी खड़े नहीं रहना चाहिये। साधु-साध्वी को बरसात के चातुर्मास में गोचरी के लिए पाँच कोस तक जाना-आना कल्पता है। यह जाने-आने से संबंधित दूसरी समाचारी जानना। 3. बीच में नदी बहती हो तो नदी उतर कर पाँच कोस तक जानाआना नहीं कल्पता, पर कुणालानगरी के पास ऐरावती नदी है। वह नित्य बहती रहती है, पर उसका पाट बहुत चौड़ा है और पानी भी स्वल्प है। इसलिए एक पैर जल में और एक पैर ऊँचे आकाश में जमीन पर रखते हुए नदी उतरे, तो चारों ओर पाँच कोस जाना-आना कल्पता है। ऐसी नदी न हो, तो नहीं कल्पता। यह नदी उतरने से संबंधित तीसरी समाचारी जानना। 4. बरसात में रहे हुए साधु और साध्वी से गुरु ने कहा हो कि तुम ग्लान (रुग्ण) को आहार-पानी देना, तो उसके लिए आहार ला कर देना कल्पता है, पर अपनी मति से ग्लान के लिए आहार ला कर देना कल्पता नहीं है और यदि गुरु ने कहा हो कि तुम तुम्हारे लिए ही ले आओ, तो अपने लिए ही लाना कल्पता है, पर अन्य को देना नहीं कल्पता। यदि गुरु ने कहा हो कि तुम ग्लान को आहार ला कर देना और तुम भी खाना, तो लाना और देना कल्पता है। यह साधुओं को परस्पर देने-लेने से संबंधित चौथी समाचारी जानना। 5. चौमासे में रहे हुए साधु-साध्वी को 1. दूध, 2. दही, 3. मक्खन, 4. घृत, 5. तेल, 6. गुड़, 7. शहद, 8. मदिरा और 9. मांस इन नौ विगइयों में से मदिरा, मांस, शहद और मक्खन ये चार विगइयाँ तो प्रथम से ही सब प्रकार से वर्जित (त्याज्य) होती हैं। इसलिए इन्हें छोड़ कर शेष पाँच विगइयाँ बलवान और रोग-रहित शरीर वाले को नित्य लेना नहीं कल्पता, पर कारण से लेना पड़े, तो ली जा सकती हैं। यह विगय-निषेध से संबंधित पाँचवीं समाचारी जानना। 6. चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी से यदि कोई ग्लान कहे कि मेरे