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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (421) लिए अमुक वस्तु गृहस्थ के घर से ले आना, तब लाने वाला साधु गुरु से पूछे कि हे स्वामिन्! ग्लान साधु अमुक चीज मँगाता है, क्या मैं ले आऊँ? गुरु कहे कि कितनी मँगाता है? तब ग्लान से पूछे। ग्लान कहे कि इतनी चीज चाहिये। फिर गुरु से कहे कि हे स्वामिन्! अमुक चीज ग्लान इतनी मँगाता है। तब गुरु कहे कि इतनी चीज इतने प्रमाण में लाना। फिर वह साधु जब गोचरी जाये, तब ग्लान की जरूरत से ज्यादा चीज श्रावक देने लगे, तो कहना कि इतनी ही चीज की ग्लान को आवश्यकता है। फिर भी यदि श्रावक कहे कि आप ज्यादा ले जाइये। आप भी खाना, पीना और उपयोग में लेना। मेरे घर में बहुत है, इसलिए सुखपूर्वक लीजिये, तो लेना, पर ग्लान के नाम से स्वयं ले कर उपयोग करना नहीं कल्पता। यह ग्लान की जरूरत की वस्तु ला कर देने से संबंधित छठी समाचारी जानना। . 7. बरसात में रहे हुए स्थविरकल्पी साधुओं को श्रावकों के घरों में . जो नये श्रावक हुए हों, उनके घर हर कोई छोटे अथवा बड़े साधु जायें और वे जो कुछ माँगें, बह देते हैं, पर ना नहीं कहते। वे छोटे-बड़े साधु की तरफ नहीं देखते, पर चौरासी गच्छ के साधुओं को देने की ही इच्छा रखते हैं। तथा जहाँ साधुओं को भी ऐसा विश्वास होता है कि जो चीज अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलेगी, वह इनके घर में तो जरूर मिलेगी, ऐसे श्रावक जो होते हैं उनके घर में साधुओं को दिखाई न देने वाली चीज नहीं माँगनी चाहिये। क्योंकि वे श्रावक तो हर चीज का दान देने की इच्छा वाले होते हैं, इसलिए वे ऐसा जान सकते हैं कि यह चीज इन्हें कहीं भी नहीं मिली होगी, इसलिए माँगने आये हैं। इस कारण से वह बाजार से मोल ला कर अथवा नासमझ नया श्रावक हो, तो बाहर से चुरा ला कर भी साधु को दे दे। इसलिए ऐसे घरों में अनदेखी वस्तु माँगना नहीं कल्पता। यह अदृष्टयाचनवर्जन से संबंधित सातवीं समाचारी जानना। 8. बरसात में रहे हुए साधुओं को नित्य एक बार भोजन करना चाहिये और गृहस्थों के घर गोचरी के लिए भी एक बार ही जाना चाहिये। पर आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, ग्लान, जिन्हें दाढ़ी-मूछे नहीं आई हैं, ऐसे
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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