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________________ (406) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 1. गौतम फल्गुमित्र, 2. वासिष्ठ धनगिरि, 3, कुत्स शिवभूति, 4. कौशिक दुज्जन्त, 5. कौशिक कृष्ण, 6. काश्यप भद्र, 7. काश्यप नक्षत्र, 8. काश्यप रक्षित, 9. आर्य नाग, 10. वासिष्ठ जेहिल, 11. माढर विष्णु, 12. गौतम कालक, 13. गौतम संपलित, 14. गौतम भद्रक, 15. गौतम आर्यवृद्ध, 16. काश्यप संघपालित, 17. काश्यप आर्य हस्ती, 18. सुव्रत आर्य धर्म, 19. काश्यप हस्त, 20. काश्यप सिंह, 21. काश्यप धर्म, 22. गौतम आर्य जंबू, 23. काश्यप नन्दित, 24. माढर देवर्द्धि गणि क्षमाश्रमण, 25. वत्स्य स्थिरगुप्त, 26. गणि कुमारधर्म और 27. काश्यप देवर्द्धि क्षमाश्रमण। उपर्युक्त सब स्थविर भगवन्तों को त्रिकरण-योग से नमस्कार हो। त्रैराशिक शाखा और वैशेषिक मत की उत्पत्ति श्री महावीर से पाँच सौ चवालीस वर्ष बीतने के बाद श्रीगुप्त आचार्य का शिष्य षडुलूक रोहगुप्त हुआ। एक बार वह अतिरंजिका नगरी में आया। उस समय एक बड़ा वादी पोट्टशाला नामक तापस भी उस नगरी में आया। वह बिच्छ, साँप, चूहा, हरिण, सूअर, काक और पक्षी ये सात पदार्थ बनाने की विद्या जानता था। इसके मद से वह सब लोगों से कहता कि मेरा पेट चीर कर विद्या बाहर चली न जाये, इस भय से मैंने पेट पर पट्टा बाँध रखा है तथा एक जामुन की डाली हाथ में रख कर वह यह सूचित करता था कि इस जंबूद्वीप में मेरे साथ वाद करने वाला अन्य कोई नहीं है। फिर उस तापस ने नगर के राजा से कहा कि आपके नगर में कोई वाद करने वाला हो, तो उसे बुला कर मेरे साथ वाद कराइये, अन्यथा मुझे विजयपताका दीजिये। तब राजा ने पटह बजवाया कि जो वाद करना चाहता हो, वह इस पटह को झेल ले। इतने में श्रीगुप्ताचार्य का शिष्य रोहगुप्त गाँव में गोचरी के लिए आया। पटह सुन कर उसने कहा कि मैं वाद करूँगा। यह कह कर गुरु के पास आ कर पटह की हकीकत कह सुनायी। गुरु ने कहा कि तुमने यह बात ठीक नहीं की, क्योंकि वह योगी क्रोधी है। इसलिए वह तुम पर विद्या चलायेगा। तब शिष्य ने कहा कि आपके होते हुए वह विजयपताका ले जाये, तो फिर अपनी क्या विशेषता रहेगी? शिष्य का ऐसा निश्चय जान कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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