________________ ... श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (407) गुरु ने उसे 1. मयूरी, 2. नकुली, 3. बिडाली, 4. व्याघ्री, 5. सिंही, 6. उलूकी और 7. श्येनी ये सात विद्याएँ दे कर कहा कि यदि कदाचित् तुम्हें कोई अधिक उपद्रव हो, तो यह ओघा मंत्रित कर के देता हूँ। इसे फिराना। इससे उपद्रव दूर हो जायेगा। __ इस तरह गुरु से आज्ञा ले कर बलश्री नामक राजा की सभा में आ कर रोहगुप्त ने योगी से कहा कि तेरा वाद क्या है? उसे सुना। तब योगी छल कर के बोला कि हमारे मत में एक जीवराशि और दूसरी अजीव राशि ये दो राशियाँ कही हैं। योगी के ऐसे बोल सुन कर रोहगुप्त ने विचार किया कि इस बात पर यदि मैं हाँ कहूँगा, तो यह कहेगा कि मैंने मेरी बात इसे मंजूर करा दी। मेरा मत इसने मान लिया। इससे लोग जानेंगे किं शिष्य हार गया। ... यह सोच कर शिष्य ने भी कुतर्क कर के कहा कि तुम दो राशि कहते हो, वह गलत है। जीव, अजीव और नोजीव संसार में ये तीन राशियाँ हैं। तब योगी ने कहा कि तुम नोजीव राशि कैसे कहते हो? रोहगुप्त ने तुरन्त एक डोरा बट कर भूमि पर रखा। वह हिलने लगा, तब उसने कहा कि देख, यह नोजीव है। ऐसी अनेक युक्तियाँ लगा कर उसने संसार में जीव, अजीव और नोजीव ये तीन राशियाँ स्थापन की। इससे योगी हार गया। .... फिर योगी विद्याएँ चलाने लगा। प्रथम उसने डंक मारने वाले बड़े बड़े बिच्छू बनाये। तब रोहगुप्त ने मोर बनाये। वे आ कर सब बिच्छू खा गये। फिर योगी ने साँप बनाये, तब शिष्य ने नेवले बनाये। योगी ने चूहे बनाये, तो शिष्य ने बिल्लियाँ बनायीं। योगी ने तीखे सींग वाले हिरन बनाये, तब शिष्य ने बाघ बनाये। उन्होंने सब हिरनों को मार डाला। योगी ने सूअर बनाये, तो शिष्य ने सिंह बनाये। योगी ने कौए बनाये, तो शिष्य ने उल्लू बनाये और योगी ने पक्षी बनाये, तब शिष्य ने बाज बनाये। आखिर इसमें भी योगी हार गया। तब योगी ने गर्दभी विद्या चलायी। उस समय शिष्य ने ओघा फिराया। इससे विद्या भाग गयी। इस तरह योगी हार गया। शिष्य विजयी हो कर बहुत परिवार के साथ गुरु के पास आया। गुरु ने पूछा कि तुमने उसे किस तरह जीता? शिष्य ने कहा कि तीन राशि की स्थापना कर के जीता। गुरु ने कहा कि वत्स! तुमने यह बात अच्छी नहीं की। तुमने भगवान के मत से विपरीत कहा। इसलिए राजसभा में जा कर 'मिच्छा मि दुक्कडं' दे आओ। यदि 'मिच्छामि दुक्कडं' नहीं दोगे, तो जैनमत के उत्थापक बनोगे। शिष्य ने कहा कि मेरे मुख से मैं क्यों झूठा बनूं? मुझ से तो मिच्छा मि दुक्कडं दिया नहीं जायेगा। मैंने