________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (379) गाँव के बाहर उसे स्थंडिल जाते गुरु मिले। मनक ने उनसे पूछा कि महाराज! क्या यहाँ शय्यंभवसूरिजी हैं? तब गुरु ने पूछा कि तुझे उनसे क्या काम है? फिर मनक ने अपनी सब हकीकत कही और कहा कि मैं उनका पुत्र हूँ। गुरु ने उसे कुछ उत्तर दे कर उपाश्रय में भेज दिया और स्थंडिल से लौटने के बाद उसे प्रतिबोध दिया। फिर मनक ने कहा कि मुझे दीक्षा दीजिये। यह सुन कर गुरु ने कहा कि यदि तू हम दोनों का पिता-पुत्र का नाता अन्य साधुओं से न कहे, तो मैं तुझे दीक्षा दूंगा। तब मनक ने कहा कि मैं किसी से नहीं कहूँगा। फिर गुरु ने उन्हें दीक्षा दी, पर मनक का आयुष्य स्वल्प जान कर उन्होंने सिद्धान्तों में से उद्धृत कर उसके लिए दशवैकालिक सूत्र की रचना की। यह सूत्र मनक ने छह महीने में पढ़ लिया। छह महीने से कुछ कम चारित्र-पालन कर मनक देवलोक गया। फिर मनक के शरीर का अग्निसंस्कार कर के श्रावक गुरु के पास आये। उस समय यशोभद्रप्रमुख अन्य बहुत से शिष्य गुरु के पास बैठे थे। गुरु ने श्रावकों को धर्मोपदेश दिया, पर उस समय गुरु की आँखों में आँसू आ गये। ___ यह देख कर यशोभद्रसहित संघ के लोगों ने पूछा कि हे पूज्य! आपके अनेक साधु परलोक जाते हैं, पर आपकी आँखों में हमने आँसू कभी नहीं देखे। आज आँस कैसे आ गये? तब गुरु ने कहा कि मोह के कारण आँसू आये। फिर संघ ने पूछा कि मोह का क्या कारण है? तब गुरु ने कहा कि संसार-संबंध से वह मेरा पुत्र था, पर स्वल्प काल चारित्र पालन किया, इससे मोह उत्पन्न हो गया। तब साधुओं ने कहा कि महाराज! आपने हमें पहले कभी क्यों नहीं कहा कि वह आपका पुत्र है? उत्तर में गुरु ने कहा कि यदि मैं तुमसे ऐसा कहता, तो तुम उससे वैयावच्च नहीं करवाते। फिर उसे क्या लाभ होता? इसलिए उसके अल्प आयुष्य में इतना लाभ जान कर तुमसे नहीं कहा। फिर गुरु दशवैकालिक सूत्र पुनः सिद्धान्तों में मिलाने लगे, तब संघ ने विनती की कि हे स्वामिन्! यह लघुग्रन्थ है, इसलिए भविष्य में अल्पबुद्धि