________________ (380) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध और अल्पायुषी लोगों के लिए बहुत उपकारक होगा। इसे ऐसा ही रहने दीजिये। यह सुन कर उसे वैसा ही रखा। __ शय्यंभवसूरि अट्ठाईस वर्ष गृहस्थ पर्याय में, ग्यारह वर्ष दीक्षा पर्याय में और तेईस वर्ष युगप्रधानपद में एवं कुल आयु बासठ वर्ष की भोग कर और अपने पाट पर श्री यशोभद्रसूरि को बिठा कर श्री महावीरस्वामी के निर्वाण से अठानबेवें वर्ष में स्वर्गलोक गये। 4. श्री भद्रबाहु और वराहमिहर का संक्षिप्त वृत्तान्त पाँचवें पाट पर श्री यशोभद्रसूरि तुंगीयायण गोत्रीय बैठे। वे बाईस वर्ष गृहस्थ पर्याय में, चौदह वर्ष व्रत पर्याय में और पचास वर्ष युगप्रधान पद में एवं सर्वायु छियासी वर्ष की भोग कर महावीर प्रभु से एक सौ अड़तालीस वर्ष बाद देवलोक गये।५. ___ उनके पाट पर दो शिष्य बैठे- एक आर्य संभूतिविजयजी माढर गोत्रीय और दूसरे श्री भद्रबाहुस्वामी पाईण (प्राचीन) गोत्रीय। इनमें से भद्रबाहुजी का संबंध इस प्रकार है प्रतिष्ठानपुर के निवासी एक वराहमिहर और दूसरा भद्रबाहु ये दो ब्राह्मण भाई थे। इन्होंने श्री यशोभद्रसूरिजी के पास धर्मदेशना सुन कर दीक्षा ली। चौदह पूर्वो का अध्ययन हो जाने के बाद गुरु ने विनीतपनानम्रतागुण देख कर भद्रबाहु को आचार्यपद दिया। अविनीत होने के कारण वराहमिहर को उन्होंने आचार्यपद नहीं दिया; क्योंकि जिस आचार्यपद को गणधरों ने धारण किया, वह आचार्यपद यदि अविनीत-अयोग्य को दे दिया जाये, तो आचार्यपद देने वाला गुरु भी अनन्त संसारी होता है। अब भद्रबाहु को आचार्य पद मिला देख कर वराहमिहर कुपित हुआ। वह गच्छ से बाहर निकल कर गुरु से द्वेष करने लगा। वह चौदह पूर्व का अभ्यासी था, इसलिए वाराहीसंहिता प्रमुख ग्रंथ बना कर और साधुवेश का त्याग कर के ब्राह्मण वेश धारण कर लोगों के आगे निमित्त कह कर अपनी आजीविका चलाने लगा।उससे जब लोग पूछते कि तुमने यह सब कहाँ