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________________ (8) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध साधु-साध्वी को लेना कल्पता नहीं है। क्योंकि राजद्वार में अनेक लोग मिलते हैं, वहाँ अधिक समय लगता है तथा कोई अमांगिलक समझता है। इसके अलावा वहाँ हाथी, घोड़े, रथ तथा स्त्रीप्रमुख को बार-बार देखने से राग उत्पन्न होता है। और फिर कोई चोर कहता है, कोई गुप्तचर भी कहता है, इत्यादि अनेक दोष लगते हैं। इसके अलावा लोग निंदा करते हैं कि देखो! यह साधु हो कर राजपिंड लेता है। अन्य दर्शन वालों के शास्त्रों में भी राजपिंड लेने का निषेध किया है। इसलिए प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधुओं को राजपिंड नहीं लेना चाहिये। तथा बाईस तीर्थंकर के साधु तो ऋजु और पंडित होते हैं। इसलिए सदोष जानें तो नहीं लेते। इस कारण से उनके लिए इस कल्प की मर्यादा नहीं है। 5. पाँचवाँ कृतिकर्म कल्प कहते हैं- वन्दन करना सो कृतिकर्म है। वह दो प्रकार का है- एक तो खड़े होना और दूसरा द्वादशावर्त वन्दन करना। इसमें श्री जिनशासन में सब तीर्थंकरों के साधुओं की ऐसी मर्यादा है कि जिसने पहले दीक्षा ली हो, उस साधु को बाद में दीक्षा लेने वाला साधु वन्दन करे; पर बाप-बेटा अथवा राजा-प्रधान इत्यादि छोटा-बड़ा देखे नहीं। यदि पुत्र ने दीक्षा पहले ली हो और पिता ने बाद में ली हो; तो पिता पुत्र को वन्दन करे। इसी प्रकार राजा अपने प्रधान को भी वन्दन करे। तथा सभी साध्वियाँ तो पुरुषोत्तम धर्म जान कर सब साधुओं को वन्दन करें; पर छोटा-बड़ा ध्यान में न लें। यदि साध्वी सौ साल से दीक्षित हो और साधु एक दिन का दीक्षित हो; तो भी वह साध्वी साधु के आगे जा कर- 'हे पूज्य! पधारिये'। इस प्रकार विनयपूर्वक खमासमणा दे कर उसे वन्दन करे। क्योंकि धर्म में मुख्य प्रधानता तो पुरुष की ही कही गयी है, इसलिए पुरुष अधिक है। इस कारण से पुरुष स्त्री को वन्दन न करे। यदि साधु हो कर साध्वी को वन्दन करता है; तो अनेक दोष लगते हैं। क्योंकि स्त्री अहंकार करे, तो नीच गोत्र बाँधती है और फिर लोग निन्दा करते हैं; इसलिए साधु-साध्वी को वन्दन न करे। यह कल्प सब चौबीसों तीर्थंकरों के साधुओं से संबंधित नियत जानना।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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