________________ (372) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध यह कह कर यह घर जायेगा। रास्ते में यंत्र से उठाया हुआ पत्थर इसके पास आ कर गिरेगा। तब यह विचार करेगा कि यदि यह तोप का गोला अभी मुझे लग जाता, तो अव्रत अवस्था में मेरी मृत्यु हो जाती। ऐसा जान कर पुनः सुधर्मस्वामी के पास लौट कर एक बार तो सम्यक्त्व मूल बारह व्रत ग्रहण करेगा। उसमें चौथे व्रत में यह ऐसा त्याग करेगा कि माता-पिता के आग्रह से यदि स्त्रियों के साथ विवाह करना पड़े, तो विवाह करूँगा, पर उनके साथ विषयभोग नहीं करूँगा। फिर यह घर जा कर माता-पिता से कहेगा कि मैं सुधर्मस्वामी के पास दीक्षा लेना चाहता हूँ। आप आज्ञा दीजिये। तब माता-पिता कहेंगे कि हे पुत्र! दीक्षा का पालन करना बड़ा दुष्कर है। इस तरह इसे बहुत समझायेंगे, पर यह नहीं मानेगा। तब माता-पिता कहेंगे कि हे पुत्र! आठ कन्याओं के साथ तेरी सगाई की हुई है, इसलिए उनके साथ विवाह कर के फिर दीक्षा ले लेना। यह सुन कर जंबूकुमार मौन धारण कर लेगा। फिर माता-पिता आठों सेठों से कहेंगे कि हमारा पुत्र वैरागी हुआ है, इसलिए आपकी कन्याओं का विवाह करना हो, तो यह आपकी मर्जी की बात है, पर यदि यह कन्याओं का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करे तो हमें दोष मत देना। यह सुन कर सब सेठ कहेंगे कि हम जंबूकुमार के साथ अपनी कन्याओं का विवाह नहीं करेंगे, पर उनकी कन्याएँ कहेंगी कि हम तो जंबूकुमार के साथ ही विवाह करेंगीं। दूसरे के साथ विवाह करने का हमारे त्याग है। तब सेठ अपनी कन्याओं से कहेंगे कि वह तो दीक्षा लेगा। तो भी कन्याएँ कहेंगी कि वह दीक्षा ले तो भले ले, पर हम तो उसके साथ ही विवाह करेंगी। फिर जंबूकुमार का एक रात में आठों कन्याओं के साथ विवाह होगा। रात के समय शय्या पर बैठ कर वह आठों पत्नियों से कहेगा कि मैं तो दीक्षा लँगा, क्योंकि यह सारा संसार अनित्य है। यहाँ कोई किसी के साथ नहीं जाता। तब स्त्रियाँ कहेंगीं कि हे स्वामी! आप इस समय दीक्षा मत लीजिये। अब तो संसार का जो सुख मिला है, उसे अच्छी तरह से भोग कर