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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (371) श्री सुधर्मस्वामी और श्री जंबूस्वामी श्री महावीरस्वामी काश्यप गोत्रीय थे। उनके पाट पर श्री सुधर्मस्वामी पाँचवें गणधर बैठे। उनका अग्निवैश्यायन गोत्र था। उनका संबंध इस तरह ____कोल्लाग सन्निवेश नामक नगर में धम्मिल नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी भद्दिला नामक भार्या के पुत्र सुधर्म हुए। वे चौदह विद्या निधान और चार वेदों में पारंगत थे। पचास वर्ष तक गृहवास में रहने के बाद उन्होंने श्री महावीरस्वामी के पास दीक्षा ली। वे पाँचवें गणधर हुए। फिर तीस वर्ष तक वे श्री महावीरस्वामी के चरणकमलों की सेवा करते रहे और श्री महावीरस्वामी के निर्वाण के बाद बारह वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में विचरे तथा आठ वर्ष तक केवली अवस्था में विचरे। इस तरह कुल एक सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर के वे मोक्ष गये।१ श्री सुधर्मस्वामी के पाट. पर श्री जंबूस्वामी बैठे। उनका काश्यप गोत्र था। उनका संबंध इस प्रकार है एक बार श्री महावीरस्वामी का समवसरण राजगृह में हुआ। वहाँ एक महातेजवन्त देव अपनी चार अग्र महीषियों सहित तथा अन्य भी अनेक देवदेवियों के परिवार सहित भगवान को वंदन करने आया। तब श्रेणिक राजा ने भगवान से पूछा कि हे स्वामिन! इस देवता की कान्ति अन्य देवों से अधिक क्यों दीखती है? तब भगवान ने कहा कि इस देव ने पूर्वभव में दस वर्ष तक नित्य तप किया है। उसके प्रभाव से यह पाँचवें ब्रह्म देवलोक में तिर्यग्नुंभक जाति में महर्द्धिक देव हुआ है। ___ यह देव आज से सातवें दिन देवलोक से च्यव कर राजगृही नगरी में ऋषभदत्त सेठ की धारिणी नामक भार्या की कोख में पुत्ररूप में उत्पन्न होगा। इसका जन्म महोत्सव कर के इसकी माता स्वप्न में जंबूवृक्ष देखने के कारण इसका नाम जंबू रखेगी। अनुक्रम से युवावस्था प्राप्त होने के बाद सुधर्म गणधर के पास धर्मदेशना सुन कर वैराग्य प्राप्त कर यह कहेगा कि मैं चारित्र लेना चाहता हूँ, इसलिए मेरे माता-पिता से पूछ कर आता हूँ।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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