________________ (370) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध की वाचना एक ही है, इसलिए एक ही गच्छ कहलाता है। यह नौवाँ गच्छ। ___ इस तरह हे शिष्य! हम श्री महावीर के ग्यारह गणधरों के नौ गच्छ कहते हैं। ये ग्यारहों गणधर द्वादशांगी के धारक, चौदह पूर्वधर, सम्पूर्ण आचार्य रत्नकरंडक के धारक याने कि द्वादश अंगरूप रत्नकरंडक के धारक जानना। ये ग्यारहों गणधर राजगृही नगरी में एकमासिक अनशन पानीरहित कर के कालगत हुए। इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया और ये सब दुःखों से रहित हुए। इनमें से नौ गणधर तो श्री महावीरस्वामी की विद्यमानता में ही मोक्ष गये और स्थविर इन्द्रभूति तथा स्थविर आर्य सुधर्म ये दो गणधर श्री महावीर भगवान के मोक्ष जाने के बाद मोक्ष गये हैं तथा अन्य सब गणधरों के शिष्य भी काल कर गये थे। कोई भी शेष नहीं रहा था। इसलिए अब वर्तमान समय में जो जैन साधु विचरते हैं, वे सब सुधर्म गणधर के जानना। अन्य गणधरों के शिष्यों का विच्छेद हुआ है। इस कारण से एक सुधर्म गच्छ ही रहा। गणधर जन्मगाँव पिता | माता गृह- | छद्मस्थ केवल | सर्वाय माता पर्याय | वर्ष 92 74 100 इन्द्रभूति गुब्बर अग्निभूति गुब्बर वायुभूति गुब्बर व्यक्त कोल्लाग सुधर्मा कोल्लाग मंडित मौरिक सन्निवेश मौर्यपुत्र मौरिक सन्निवेश अकंपित मिथिला अचलभ्राता कोशला मेतार्य तुंगिक सन्निवेश (वत्सभूमि) प्रभास राजगृह वसुभूति वसुभूति वसुभूति धनमित्र धम्मिल धनदेव मौर्य देव वसु दत्त पृथिवी पृथिवी पृथिवी वारुणी भद्दिला विजया विजया जयन्ती नन्दा वरुणदेवी | 36 | 83 बल अतिभद्रा | 16 | 8