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________________ (340) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध होती है? यह कोई समझता नहीं था। उस समय कोई भिक्षा मांगने वाला भी नहीं था। इस कारण से प्रभु जहाँ जाते, वहाँ उन्हें कोई भी अन्न नहीं देता था। फिर चार हजार साधुओं ने भूख-प्यास से पीड़ित हो कर प्रभु से आहार का उपाय पूछा, पर प्रभु कुछ नहीं बोले। वे मौन रहे। तब उन्होंने कच्छ और महाकच्छ से पूछा। उन्होंने भी कहा कि हम कुछ नहीं जानते। तब सब सोचने लगे कि हमने पहले से ही भगवान से कुछ पूछा नहीं और अब पुनः लौट कर घर जाना भी ठीक नहीं है तथा आहार किए बिना भी चल नहीं सकता। इसलिए अब हमें वनवास में रहना ही उचित है। यह सोच कर गंगा नदी के दक्षिणी किनारे के जंगल में वे जटिल तापस बन कर रहे और वृक्ष से नीचे गिरे हुए पत्र, फल, फूल आदि का आहार करने लगे तथा वृक्ष की छाल के वस्त्र पहन कर श्री ऋषभदेवजी का ध्यान-स्तवन करते हुए विचरने लगे। ऋषभदेवस्वामी के पुत्ररूप में माने हुए नमि-विनमि। प्रभु ने जब दीक्षा ली थी, तब सब पुत्रों में अलग अलग देशों का राज्य बाँट दिया था। उस समय प्रभु ने पुत्ररूप में पाले हुए कच्छ और महाकच्छ के पुत्र नमि और विनमि देशान्तर गये थे। भगवान उन्हें, राज्य देना भूल गये। वे जब वापस लौटे, तब उन्होंने भरत से कहा कि हमें राज्य क्यों नहीं दिया? तब भरत ने कहा कि मैं तुम्हें थोड़ा सा भाग देता हूँ, पर वे नहीं माने। उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे पास से नहीं लेंगे। तब भरत ने कहा कि भगवान जानें और तुम जानो। दोनों भाई भरत की उपेक्षा कर के भगवान के पास आये। उन्होंने उनके चरण कमल की सेवा कर के कहा कि हे प्रभो! आपने सब को राज्य दिया है। अब हमें भी राज्य दीजिये। भगवान ने तो संसार-त्याग किया था, इसलिए वे मौन रहे। उन्होंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। तब वे दोनों राज्य की इच्छा से भगवान के पीछे
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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