________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (337) उन कलाओं के नाम कहते हैं- 1. लेखनकला, 2. पठनकला, 3. गणितकला, 4. गीतगानकला, 5. नाटककला, 6. तालमानकला, 7. ढोल बजाने की कला, 8. मृदंग बजाने की कला, 9. वीणा-वादनकला, 10. बाँसुरीवादनकला, 11. भेरीवादनकला, 12. हाथीपरीक्षाकला, 13. अश्वपरीक्षाकला, 14. धातुर्वादकला, 15. दृष्टिवादकला, 16. मंत्रवादकला, 17. पलितविनाशिनीकला, 18. ललक्षण, 19. नारीलक्षण, 20. नरलक्षण, 21. छन्दकरण, 22. तर्कवाद, 23. न्याय, 24. तत्त्वविचार, 25. काव्यकरण, 26. ज्योतिष, 27. चतुर्वेदकला, 28. वैद्यकला, 29. षड्भाषाज्ञान, 30. वशीकरण, 31. अंजन, 32. लिपि, 33. कृषिकर्म, 34. स्वप्नविचार, 35. वाणिज्य, 36. राजसेवा, 37. शकुनविचार, 38. इन्द्रजाल, 39. वायुस्तंभन, 40. अग्निस्तंभन, 41. मेघवृष्टिकारीकला, 42. लेपनकला, 43. मर्दनकला, 44. उड़ने की कला, 45. घटबंधनकला, 46. घटभ्रमण, 47. पत्रच्छेदन, 48. मर्मभेदन, 49. फल खींचना, 50. जलवृष्टि, 51. लोकाचार सीखने की कला, 52. लोगों की मरजी रखने की कला, 53. छलाँग मारने की कला, 54. खड्गधारणकला; 55. छुरीबंधन, 56. मुद्राकरण, 57. लोहघटन, 58. दन्तसमारण, 59. काष्ठच्छेदन, 60. चित्रकरण, 61. बाहुयुद्ध, 62. दृष्टियुद्ध, 63. मुष्टियुद्ध, 64. दंडयुद्ध, 65. खड्गयुद्ध, 66. वाग्युद्ध, 67. गरुडमर्दन, 68. सर्पदमन, 69. भूतदमन, 70. योगध्यान, 71. वर्षज्ञान और 72. नामावली। ___ स्त्रियों की चौसठ कलाएँ बतायीं, उनके नाम- 1. नाचने की कला, 2. आदर देने की कला, 3. चित्रकला, 4. वादकला, 5. मंत्रकला, 6. तंत्रकला, 7. ज्ञानकला, 8. विज्ञानकला, 9. दंडकला, 10. जलस्तंभनकला, 11. गीतगानकला, 12. तालमानकला, 13. मेघवृष्टिकला, 14. फलाकृष्टीकला, 15.. वाग्गोपन, 16. आकारगोपन, 17. धर्मविचार, 18. शकुन देखना, 19. क्रियाकल्प, 20. संस्कृत भाषा बोलना, 21. प्रसादनीति, 22. धर्मनीति, 23. वर्णिकावृष्टि, 24. सुवर्णसिद्धि, 25. सुगंधित तेल बनाना, 26. लीलासहित चलना, 27. हाथी-घोड़ों की परीक्षा करना, 28. पुरुष-स्त्रीलक्षण जानना, 29. सुवर्ण-रत्नभेद का ज्ञान, 30. अठारह प्रकार की लिपि, 31. तात्कालिक बुद्धि, 32. वास्तुसिद्धि, 33. वैद्यक्रिया, 34. कामक्रिया, 35. घटभ्रमण, 36. सारिपरिश्रम, 37. अंजनयोग, 38. चूर्णयोग, 39. हस्तलाघव,