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________________ (336) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध भगवान से कहा कि कोई राक्षस जागा है।) फिर भगवान ने अवधिज्ञान से देखा, तो आग उत्पन्न हुई दिखाई दी। उन्होंने युगलिकों से कहा कि तुम उसमें तृण लगा कर उसे ग्रहण करो। फिर उसमें शालिप्रमुख धान्य पका कर खाओ। तब युगलिकों ने तृण तोड़ कर अलग से आग जला कर उसमें अनाज डाला। वह सब जल गया। हाथ में कुछ नहीं आया। यह देख कर वे पुनः भगवान के पास आ कर बोले कि वह तो स्वयं ही भूखा है, इसलिए सब धान्य खा जाता है। हमें कुछ भी नहीं देता। यह सुन कर भगवान ने कहा कि जब मैं हाथी पर सवार हो कर आऊँ, तब मुझे मिट्टी का एक पिंड देना। फिर युगलिकों ने वैसा ही किया। वे मिट्टी का पिंड ले आये। उस मिट्टी से भगवान ने हाँडी, कुंडीप्रमुख बर्तन बना कर दिये और सब विधि भी बता दी। उन्होंने कहा कि इन बर्तनों को अग्नि में पका कर इनमें अनाज और जल डाल कर आग पर रखो। इस तरह धान्य पका कर खाओ। भगवान की बताई हुई विधि से युगलिक धान्य पका कर खाने लगे, तब भोजन पचने लगा। भगवान की दी हुई लेखनादि कलाशिक्षा ___ भगवान ने ब्राह्मी को दाहिने हाथ से अठारह लिपियाँ लिखना सिखाया। उनके नाम कहते हैं- 1. हंसलिपि, 2. भूतलिपि, 3. यक्षलिपि, 4. राक्षसलिपि, 5. उड्डीलिपि, 6. यावनीलिपि, 7. तुर्कीलिपि, 8. कीरीलिपि, 9. द्राविड़ीलिपि, 10. सैंधवीलिपि, 11. मालवीलिपि, 12. नडीलिपि, 13. नागलीलिपि, 14. लाटीलिपि, 15. पारसीलिपि, 16. अनिमित्तीलिपि, 17. चाणक्कीलिपि और 18. मौलदेवीलिपि। ये अठारह लिपियों के नाम तथा देशविशेष से अन्य भी लाटी, चौड़ी, डाहली, कानडी आदि अठारह लिपियाँ जानना तथा गणित याने अंकविधान भगवान ने सुन्दरी को बायें हाथ से करना सिखाया। ऐसा क्यों? तो कहते हैं कि- अङ्कानां वामतो गतिः अक्षराणां दक्षिणतो गतिः। / भगवान ने भरत महाराज को रूप करने का कर्म सिखाया तथा बाहुबली को पुरुषादि लक्षण तथा पुरुष की बहत्तर कलाओं का ज्ञान दिया।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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