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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (335) तथा तेल, सूत्र, कपास, बर्तन, भाटक इत्यादिक बाजार बनाये। इस तरह अनेक. व्यवसायी तैयार हुए। युगलिक धर्म-निवारण और भोजनविधि-निरूपण _ श्री ऋषभदेवस्वामी के पाँच नाम हुए- एक ऋषभदेव, दूसरा प्रथम राजा, तीसरा प्रथम भिक्षाचर, चौथा प्रथम केवली और पाँचवाँ प्रथम तीर्थंकर। श्री ऋषभदेव अरिहन्त महाचतुर, प्रतिज्ञा के पालक, रूपवान, सर्वगुण-सम्पन्न सरल और विनीत थे। वे बीस लाख पूर्व तक कुमारपद पर रहे। तिरसठ लाख पूर्व तक उन्होंने राज्यसंचालन किया। राज्यकाल में भरत के साथ ब्राह्मी जन्मी थी, उसका विवाह बाहुबली के साथ किया और बाहुबली के साथ सुन्दरी जन्मी थी, उसे भरत का स्त्रीरत्न करने के लिए रखा। इस तरह भगवान ने युगलधर्म का निवारण किया। . पूर्व में युगलिक अपनी इच्छानुसार कल्पवृक्षप्रदत्त आहार करते थे। जब वह स्थिति नहीं रही, तब लोग मूल, पत्र, कन्द, फल और फूल का आहार करने लगे। अपक्व शालिप्रमुख कच्चा धान्य खाने लगे। वह पचता नहीं था। उसके कारण पेट में दर्द होता था। इसलिए वे भगवान के पास आ कर कहने लगे कि भोजन करने से हमारा पेट फूल जाता है। तब भगवान ने कहा कि धान्य को हाथ से मसल कर उसे हाथ की उष्णता दे कर खाओ, तो वह पच जायेगा। युगलिकों ने वैसा किया, पर कुछ दिन बाद वह भी पचने योग्य न रहा। फिर बगल और हृदय पर रख कर उष्णता दे कर आहार करने के लिए कहा। वैसा करते हुए कुछ समय बाद वह भी पचना बन्द हो गया। . ऐसे समय में जंगल में बाँस घिसे जाने से आग उत्पन्न हुई। आग देख कर युगलिकों को लगा कि यह कोई अपूर्व रत्न उत्पन्न हुआ है। फिर वे उसे हाथ से उठाने लगे, तब उनके हाथ जल गये। उससे डर कर वे ऋषभदेवजी के पास आये और उनसे कहा कि हे स्वामिन्! कोई एक अपूर्व रत्न उत्पन्न हुआ है, पर उसमें क्रोध बहुत है। उसे हाथ लगायें तो वह जलाता है। (किसी प्रति में ऐसा भी लिखा है कि युगलिकों ने जा कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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